POSCO एक्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर Supreme Court ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने ये मामले में सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।
इस मामले में सुनवाई के दौरान AG केके वेणुगोपाल ने कहा था बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को निचली अदालतों के लिए मिसाल माना जाएगा तो परिणाम विनाशकारी होगा। AG ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पोक्सो अधिनियम की धारा 7 की गलत व्याख्या करते हुए विवादास्पद फैसला दे दिया है। इतना ही नही यह फैसला एक असाधारण स्थिति को जन्म देगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट का विवादास्पद फैसला
दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित विवादास्पद फैसले के खिलाफ AG केके वेणुगोपाल द्वारा दाखिल याचिका समेत, इस याचिका का समर्थन करते हुए दाखिल अन्य याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।
इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि “एक नाबालिग के स्तन को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना POCSO के तहत यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। इसका मतलब कि यदि यौन उत्पीड़न के आरोपी और पीड़िता के बीच सीधे स्किन टू स्किन का संपर्क नहीं होता है, तो POSCO के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।
दरअसल 2016 के इस मामले में 12 साल की नाबालिग के साथ छेड़छाड़ की गई थी और निचली अदालत ने पोक्सो एक्ट के तहत आरोपी को दोषी करार देते हुए 3 साल की सजा भी सुनाई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने फैसला पलटते हुए इसे पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न नहीं माना और सिर्फ छेड़छाड़ की श्रेणी में इस अपराध को लिया। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बगैर स्किन टू स्किन टच के पोक्सो के तहत उत्पीड़न नहीं माना जा सकता. हालांकि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी है।
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