Gangaur Puja 2022: गणगौर पूजा कब है?जानें तारीख, मुहूर्त और पूजन विधि

Gangur Puja 2022: चैत्र शुक्‍ल तृतीया तिथि का शास्‍त्रों में बेहद महत्‍व है। इसी दिन से गणगौर लोकपर्व होने के साथ भगवान महादेव और मां पार्वती के आशीर्वाद से अखंड सौभाग्‍य और सुख की प्राप्ति होती है।

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Gangaur 2022: चैत्र शुक्‍ल तृतीया तिथि का शास्‍त्रों में बेहद महत्‍व है। इसी दिन से Gangaur लोकपर्व होने के साथ भगवान महादेव और मां पार्वती के आशीर्वाद से अखंड सौभाग्‍य और सुख की प्राप्ति होती है। इसकी शुरुआत होली के दूसरे दिन से ही हो चुकी है। ये पर्व करीब 16 दिनों तक चलता है।चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तीज को आकर समाप्त होता है। पर्व का महत्‍व राजस्थान ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में मनाया जाता है।

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Gangaur 2022: सुहागिनें अमर सुहाग के लिए रखतीं हैं व्रत

इस दिन कुंवारी कन्‍याएं और विवाहित स्त्रियां मिट्टी से गौरा जी की प्रतिमा बनाकर उसे सुंदर पोषाक पहनाकर उसका सिंगार करती हैं। उसके बाद खुद भी सजती और संवरती हैं। कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनपसंद वर पाने की कामना से करती हैं।

वहीं विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं।इस दिन सभी महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं और खनकती चूड़ियां और पायल की आवाज के साथ बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं। इस पूजा में 16 अंकों का विशेष महत्व होता है।
गणगौर के गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली, मेहंदी, से 16-16 बिंदियां लगाती हैं और गणगौर मां को चढ़ने वाले प्रसाद फल और सुहाग की सामग्री 16 के अंक में ही चढ़ाई जाती है।

Gangaur 2022: गणगौर का उत्सव घेवर और मीठे गुणों के बिना अधूरा माना जाता है। खीर, चूरमा, पूरी, मठरी से गणगौर को पूजा जाता है। आटे और बेसन से घेवर बनाया जाता है। ये भी गणगौर माता को भेंट किया जाता है। गणगौर पूजन का स्थान किसी एक स्थान या घर में किया जाता है। इस पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा होती है।

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गणगौर पूजा 2022 का समय
Gangaur पूजा तिथि और वार: 04 अप्रैल 2022, दिन सोमवार तृतीया तिथि प्रारंभ: 03 अप्रैल 2022, 12:35 PM तृतीया तिथि, समाप्त: 04 अप्रैल 2022, 01:55 PM

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Gangaur 2022: पूजन में ज्‍वारों का है बड़ा महत्‍व

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चैत्र कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को ही सुबह नित्‍य कर्म से निवृत होकर महिलाएं एक टोकरे में ज्‍वारे बोतीं हैं। इन ज्‍वारों को ही मां गौरी और भगवान शिव का स्‍वरूप माना जाता है। जब तक ज्‍वारों का विधि-विधान के साथ विसर्जन नहीं कर दिया जाता, नियम के साथ पूजा करने के बाद उसमें भोग लगाना चाहिए। गौरा जी के इस स्‍वरूप की स्‍थापना पर महिलाएं सुहाग की वस्‍तुएं, बिंदी, मिठाई, मेहंदी आदि चढ़ातीं हैं।

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