हिंदी के विख्यात Kavi Kunwar Narayan अब हमारे बीच नहीं रहे। कुंवर नारयण हिंदी के सबसे प्रयोगधर्मी साहित्यकार थे। वो 90 वर्ष के थे। गत चार जुलाई को मस्तिष्काघात के बाद वह कोमा में चले गए थे। उसके कारण उन्हें बीच-बीच में काफी समय अस्पताल में भी भर्ती रखा गया था और आज उनके घर पर उनका निधन हो गया।
कुंवर नारायण ने साहित्य की कई विधाओं में लिखा है। लेकिन उन्हें उनकी कविताओं के लिए ज्यादा जाना जाता है। राजनीतिक विवाद से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले कुंवर को 41वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था। हिंदी साहित्य में उनका बहुत सम्मान था। वे पिछले साठ वर्षों से लेखन क्षेत्र से जुड़े थे। उन्हें नई कविता आंदोलन का सशक्त हस्ताक्षर माना जाता है। इनका जन्म 19 सितंबर 1927 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था। इन्होंने लखनऊ से अंग्रेजी भाषा में एमए किया था। 1956 में जब वे 29 वर्ष के थे इनका पहला काव्य संग्रह चक्रव्यूह प्रकाशित हुआ। अज्ञेय ने उनकी कविताओं को ‘तीसरा सप्तक’ में शामिल किया था।
कुंवर जब तक रहे जीवन और प्रेम पर लिखते रहे। उनकी प्रमुख रचनाओं में चक्रव्यूह तीसरा सप्तक, परिवेश हम-तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने एवं आकारों के आसपास हैं। उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, केरल का कुमारन अशान पुरस्कार, व्यास सम्मान, श्लाका सम्मान (हिंदी अकादेमी दिल्ली), उ.प्र. हिंदी संस्थान पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, कबीर सम्मान मिल चुका था। साहित्य अकादमी ने उन्हें अपना वृहत्तर सदस्य बनाकर सम्मानित किया था।
कवि कुंवर नारायण वर्तमान में दिल्ली के सीआर पार्क इलाके में पत्नी और बेटे के साथ रहते थे। उनकी पहली किताब ‘चक्रव्यूह’ साल 1956 में आई थी। साल 1995 में उन्हें साहित्य अकादमी और साल 2009 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान भी मिला था। वह आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव और सत्यजीत रे से काफी प्रभावित रहे।
सूत्रों ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार आज शाम दिल्ली के लोधी शव दाहगृह में किया जाएगा। जीवन पर कुंवर हमेशा कहते थे कि “समय हमें कुछ भी अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता, पर अपने बाद अमूल्य कुछ छोड़ जाने का पूरा अवसर देता है।” सच ही कहा था उन्होंने आज जो भी वह हमारे लिए अपनी कृतियों में छोड़ जा रहे हैं वो अमूल्य ही तो है।