”सैर कर दुनिया की गाफिल…”, पृथ्वी का ओर-छोर मापने का आह्वान है ‘घुमक्कड़ शास्त्र’

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आज के समय में हम जब कभी यूट्यूब, इंस्टाग्राम,फेसबुक या ऐसे ही दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो कंटेंट देखते हैं तो उसमें से काफी सारा कंटेंट ट्रैवल व्लॉगिंग से जुड़ा होता है। इतने सारे ट्रैवल कंटेंट को देखकर आपका भी मन करता होगा क्यों न कहीं सैर सपाटे पर निकला जाए। कई लोग सिर्फ प्लानिंग करते रह जाते होंगे कि यहां जाया जाएगा या वहां जाया जाएगा। लेकिन अधिकतर यह देखा जाता है कि लोग घूमने फिरने को हल्के-फुल्के अंदाज में लेते हैं या फुरसत मिलने पर की जाने वाली कोई चीज समझते हैं। जो लोग ये सोच रखते हैं कि घूमने फिरने को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए उनको महापंडित राहुल सांकृत्यायन को जरूर पढ़ना चाहिए। खासकर उनकी किताब ‘घुमक्कड़ शास्त्र’

आज से करीब 75 साल पहले लिखी गई इस किताब के नाम में ही इतना आकर्षण है। घुमक्कड़ी को शास्त्र जितना महत्व देने वाले राहुल इस किताब में घुमक्कड़ होने से जुड़े अधिकतर सवालों के जवाब देते हैं। पहले अध्याय में राहुल बताते हैं कि घुमक्कड़ी सिर्फ उन लोगों के बस की बात है जो साहसी हैं। वे अपील करते हैं, ” कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों। संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।”

चूंकि मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु होता है इसलिए उसे अपनी इस खूबी पर विश्वास करना चाहिए और विश्व को जानने के अभियान पर निकल जाना चाहिए। घुमक्कड़शास्त्र में राहुल सांकृत्यायन उन सभी बंधनों को तोड़ने की अपील करते हैं जो कि व्यक्ति को एक जगह रुके रहने पर विवश करते हैं। राहुल व्यावहारिक बातें बताते हुए जेब खर्च से लेकर शिक्षा तक हर चीज के बारे में पाठक को बताते हैं। वे कहते हैं कि अगर आप यात्रा पर हैं तो कैसे आप आत्मनिर्भर होकर गुजर बसर कर सकते हैं। सीखते रहने को महत्वपूर्ण बताते हुए राहुल यह अपेक्षा करते हैं कि शख्स अपना सर्वांगीण विकास करे।

राहुल सांकृत्यायन का मानना है कि यह घुमक्कड़ी का अभाव ही है जो किसी समाज के विकास की गति को रोक देता है। न सिर्फ हमारे देश में बल्कि दुनिया के कई देश हैं जहां ऐसी जातियां पाई जाती हैं जो स्वभाव से घुमक्कड़ हैं जैसे कि बंजारे। किताब में राहुल सांकृत्यायन बताते हैं कि घुमक्कड़ी करना सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं वरन स्त्री के लिए भी बहुत आवश्यक है। वे बताते हैं कि लड़कियां कैसे घुमक्कड़ी कर सकती हैं। वे तो देश के सभी युवक युवतियों को इस महान कार्य के लिए आमंत्रित करते हैं।

घुमक्कड़ी की राह में रोड़े के रूप में आने वाली चीजों के लिए राहुल सांकृत्यायन ने इस किताब में अलग-अलग अध्याय लिखे हैं। जैसे कि धर्म,प्रेम और मृत्यु इत्यादि। राहुल सांकृत्यायन बताते हैं कि दुनिया का कई देशों से परिचय इस घुमक्कड़ी के चलते हुआ। जैसे कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि। यही नहीं प्राचीन समय से अलग-अलग यात्री घुमक्कड़ी कर ज्ञान अर्जित करते रहे हैं। आधुनिक ज्ञान की सभी विधाएं किसी न किसी घुमक्कड़ी का ही नतीजा हैं। बुद्ध से लेकर डारविन तक सब घुमक्कड़ थे।

एक अहम सवाल ये कि क्या हमारी घुमक्कड़ी का उद्देश्य होना आवश्यक है ? इसके बारे में राहुल कहते हैं कि भले आपके पास मकसद हो या नहीं लेकिन घुमक्कड़ी हर लिहाज से आपके लिए फायदेमंद है। इसके अलावा वे इस बात को अहमियत देते हैं कि आपने जो भी यात्रा की है उसको दर्ज जरूर करें। जिससे कि भविष्य में दूसरे घुमक्कड़ों को इससे मदद हो। राहुल खुद स्पष्ट करते हैं कि घुमक्कड़ी के जन्मजात अंकुरों की पुष्टि, परिवर्धन तथा मार्गप्रदर्शन इस ग्रंथ का लक्ष्य है। वे कहते हैं कि घुमक्कड़ को इस शेर को अपना पथ प्रदर्शक मानना चाहिए-

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां?
जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहां?

किताब के बारे में
लेखक-राहुल सांकृत्यायन
प्रकाशक- राधाकृष्ण पेपरबैक्स
पेज संख्या- 158
मूल्य- 199 रुपये

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