बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद उसके नाम को सार्वजनिक करने को सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना है । कोर्ट ने कहा है मरने वाले का सम्मान किया जाना चाहिए। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर बलात्कार पीड़िता नाबालिग या दिमागी तौर पर असक्षम है तो उसका नाम परिवार की सहमति से भी सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ये बात निर्भया फंड के मामले पर सुनवाई के दौरान मंगलवार (24 अप्रैल) को कही।
Content optimization सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि हाल ही में कठुआ गैंगरेप मामले में पीड़िता का नाम सार्वजनिक होने पर सीधे टिप्पणी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच भारतीय दंड संहिता की धारा 228 A पर विस्तृत सुनवाई के लिए भी तैयार हो गई। इस सेक्शन में प्रावधान है कि रेप पीड़िता के मर जाने पर उसके परिवार की सहमति से उसकी पहचान सार्वजनिक की जा सकती है। पीड़िता अगर नाबालिग है या दिमागी तौर पर नाकाबिल है तब भी परिवार की मंज़ूरी से उसकी पहचान मीडिया रिपोर्ट में बताई जा सकती है। इस सेक्शन का उल्लंघन करने पर यानी बिना इजाज़त नाम सार्वजनिक करने पर 2 साल तक कि सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है।
अभी हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट कठुआ गैंगरेप मामले में पीड़िता की पहचान उजागर करने के लिए कई मीडिया संस्थानों पर 10-10 लाख का जुर्माना लगा चुका है। निर्भया गैंगरेप के बाद महिला सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आज एमिकस क्यूरी इंदिरा जयसिंह ने सेक्शन 228A पर विस्तृत सुनवाई की मांग की थी। अब मामले पर अगली सुनवाई 8 मई को होगी।