आधार की अनिवार्याता और संवैधानिकता को लेकर एक बार फिर मंगलवार (24 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। UIDAI ने आधार के पक्ष में दलीलें देते हुए कहा कि निजता का अधिकार सम्पूर्ण नहीं है। अन्य मौलिक अधिकारों की तरह इस पर भी प्रतिबंध लागू होता है और निजता के अधिकार को भी दूसरे नागरिक अधिकारों के साथ सामंजस्य बिठाना होगा, साथ ही ये भी कहा गया कि कानून किस उद्देश्य से लाया जा रहा है,उस उद्देश्य के लिए कितनी सूचना जनता से ली जा रही है, इन चीजों को न्यायिक रूप से परखना होगा। UIDAI  ने कहा कि अगर नाम उजागर करने का ही उदाहरण लिया जाए तो जुवेनाइल और रेप के मामलों में अभियुक्त और पीड़िता का नाम नहीं बता सकते और ये केस दर केस निर्भर करता है। UIDAI की तरफ से यूरोपियन यूनियन के देशों के नियम का भी हवाला दिया गया कि वहां मुख्य उद्देश्य है कि जनता कि व्यक्तिगत जानकारी सदस्य देशों के पास होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने UIDAI ने कहा कि आधार कानून में UIDAI को ये जानने का हक नहीं है कि किस विशेष कारण से आधार के नंबर का ऑथेंटिफिकेशन हुआ है। कोर बॉयोमेट्रिक जानकारी हम साझा कर ही नहीं सकते और एयरटेल और एक्सिस बैंक को जानकारी साझा करने को लेकर हम उनको दंडित भी कर चुके हैं। सुनवाई के दौरीन IT एक्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि अगर कोई व्यक्ति डेटा लीक करता है तो जिस व्यक्ति की जानकारी लीक हुई है उसके लिए मुआवजे का भी प्रावधान है। UIDAI ने कहा कि अदालत आधार मामले को एक डॉक्टर की तरह ट्रीट करे, जो अपने मरीजों को ठीक करने पर ध्यान देता है कि कैसे मरीजों को ठीक करना है, और कैसे बचाया जाना है। अदालत को बताना चाहिए कि आधार एक्ट में और क्या क्या सुधार करना चाहिए, न कि इसको खत्म करना चाहिए। मामले पर सुनवाई बुधवार (25 अप्रैल) भी जारी रहेगी।

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