महात्मा गांधी हत्या मामले की दोबारा जांच की मांग करने वाले याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 मार्च) को खारिज कर दिया। जस्टिस एसए बोबड़े और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिका खारिज कर दी। फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है इतने लंबे वक्त बाद हत्या की दोबारा जांच की मांग उचित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ये याचिका अकादमिक शोध पर अधारित है और ये वर्षों पहले हुये किसी मामले को फिर से खोलने का आधार नहीं बन सकती।

मामले में नियुक्त एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र ने भी कहा थी कि महात्मा गांधी हत्याकांड की फिर से सुनवाई की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस मामले में फैसला अंतिम रुप से पहले आ चुका है और इस घटना के लिये दोषी व्यक्ति अब जीवित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस हत्याकांड की जांच नये सिरे से कराने के लिये दायर याचिका पर छह मार्च को सुनवाई पूरी कर ली थी। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए स्पष्ट किया था कि वो भावनाओं से प्रभावित नहीं होगा बल्कि याचिका पर फैसला करते समय कानूनी दलीलों पर भरोसा करेगा।

याचिका अभिनव भारत की ओर से मुंबई के पंकज फडनीस ने दायर की थी….पंकज फडणीस ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उनके पास ऐसे दस्तावेज हैं, जिसमें महात्मा गांधी की हत्या के पीछे बड़े पैमाने पर साजिश होने का पता चलता है। पंकज फड़नीस कहना था कि गांधीजी की हत्या में किसी विदेशी एजेंसी का हाथ हो सकता है इसके अलावा ‘तीन बुलेट की कहानी’ पर प्रश्न चिह्न लगाने के साथ यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या नाथूराम गोडसे के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने चौथी गोली भी दागी थी?

महात्मा गांधी की हत्या के मामले में अदालत ने 10 फरवरी, 1949 को नाथूराम गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई थी और विनायक दामोदर सावरकर को सबूतों की कमी के कारण संदेह का लाभ दे दिया गया था. पूर्वी पंजाब हाई कोर्ट द्वारा 21 जून, 1949 को गोडसे और आप्टे की मौत की सजा की पुष्टि के बाद दोनों को 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में फांसी दे दी गयी थी।

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