उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि कुछ लोग हिंदू शब्द को ‘अछूत’ और ‘असहनीय’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने हिंदू धर्म के सच्चे मूल्यों के संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया ताकि ऐसे विचारों और प्रकृति को बदला जा सके जो ‘गलत सूचनाओं’ पर आधारित हैं। शिकागो में स्वामी विवेकानंद के 11 सितंबर 1893 को दिए गए चर्चित भाषण के 125 साल पूरे होने पर विश्व हिंदू कांग्रेस का आयोजन किया गया है।
यहां दूसरी विश्व हिंदू कांग्रेस को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा कि भारत सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास करता है और सभी धर्मों को सच्चा मानता है। हिंदू धर्म के अहम पहलुओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘साझा करना’’ और ‘‘ख्याल रखना’’ हिंदू दर्शन के मूल तत्व हैं, नायडू ने अफसोस जताया कि हिंदू धर्म के बारे में काफी गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं। कुछ लोग हिंदू शब्द को ही अछूत और असहनीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी शुक्रवार को विश्व हिंदू कांग्रेस को संबोधित किया था। अपने संबोधन में भागवत ने कहा था कि हिंदू किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते हैं, लेकिन कुछ लोग भी हो सकते हैं जो हिंदुओं का विरोध करते हैं। संघ प्रमुख ने हिंदू समुदाय से एकजुट होकर मानव कल्याण के लिए काम करने की अपील भी की थी। लेकिन उनके विश्व हिंदू कांग्रेस में दिए गए एक बयान को लेकर देश में काफी विवाद भी हुआ था।
बता दे कि हिंदू वर्षों से प्रताड़ित हैं, क्योंकि वे हिंदू धर्म और आध्यात्म के बुनियादी सिद्धांतों पर अमल करना भूल गए हैं। सम्मेलन में हिस्सा ले रहे लोगों से भागवत ने अपील की कि वे सामूहिक रूप से काम करने के विचार को अमल में लाने के तौर-तरीके विकसित करें। भागवत ने कहा, ‘हमें एक होना होगा।’ उन्होंने कहा कि सारे लोगों को किसी एक ही संगठन में पंजीकृत होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह सही पल है। हमने अपना अवरोहण रोक दिया है। हम इस पर मंथन कर रहे हैं उत्थान कैसे होगा। हम कोई गुलाम या दबे-कुचले देश नहीं हैं। भारत के लोगों को हमारी प्राचीन बुद्धिमता की सख्त जरूरत है।’ भागवत ने कहा कि आदर्शवाद की भावना अच्छी है, लेकिन वह ‘‘आधुनिकता विरोधी’’ नहीं हैं और ‘‘भविष्य हितैषी’’ हैं।