गंगा के फैले भयंकर प्रदूषण, उसके लहरों से पैसा कमाने की होड़ के बीच सफाई के एक से बढ़कर एक अभियान चलाने के दावे किये गये। वहीं केंद्र सरकार दावा कर चुकी है कि, मार्च 2019 तक गंगा 80 फीसदी तक साफ हो जाएगी। लेकिन मां गंगा के आंचल में फैली गंदगी को देखकर ये लक्ष्य संदेह ज्यादा और उम्मीद कम पैदा करता है। केंद्र सरकार नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा में फैली गंदगी और गाद की सफाई के लिये कुछ खास नहीं कर सकी है। राष्ट्रीय गंगा सफाई मिशन के तहत करीब 21 हजार करोड़ रुपए की कुल 195 परियोजनाएं संबंधित राज्यों में चलाई जा रही हैं।  लेकिन आज भी कानपुर से लेकर हरिद्वार तक गंगा का हाल बदहाल है।

लोग एनजीटी की रोक के बावजूद हरिद्वार में मां गंगा के आंचल को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि सफाई के वृहद अभियान का ही नतीजा है कि गंगा के जलस्तर में उसकी सेहत का अंदाजा लगाने वाले तीन पैमानों पर सुधार हुआ है। बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड, डिसॉल्व्ड ऑक्सीजन और कोलिफोर्म. 2016 के मुकाबले 2017 में गंगा प्रवाह के 80 स्थानों पर जलस्तर में सुधार पाया गया। 33 जगहों पर डीओ स्तर बेहतर हुआ है तो 26 जगहों पर बीओडी लेवल सुधरा है। तीस जगहों पर कोलीफोर्म बैक्टीरिया काउंट में गिरावट आई है। लेकिन 2500 किलोमीटर लंबी नदी के लिए ये आंकड़े संतोषजनक नहीं है।

गंगा को स्वच्छ बनाने के लिये राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन नमामि गंगे अभियान के तहत जागरुकता कार्यक्रम चला रही है। केंद्र सरकार की कोशिशों के तहत पूरे उत्तराखंड में जागरुकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। उत्तराखण्ड के तमाम जनपदों की तरह पौड़ी के राजकीय इण्टर कॉलेज में भी बच्चों में गंगा सफाई के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये नमामि गंगे योजना के तहत एक क्वीज प्रतियोगिता आयोजित की गई।जिसमें गंगा स्वच्छता संबधी प्रश्न पूछे गए। प्रतियोगिता में सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों के बच्चों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।प्रतियोगिता को आयोजित कर रही नमामि गंगे की टीम का कहना है कि गंगा को साफ बनाने भी बच्चों को योगदान भी बेहद अहम है।इसकी महत्ता को समझते हुए बच्चे स्वछता के प्रति जागरूक बने और समाज को भी जागरूक करें।

नमामि गंगे के तहत आयोजित क्वीज प्रतियोगिता में हर जनपद के विजेता छात्र 16 सितम्बर को राजधानी देहरादून में होने वाली राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे। केंद्र सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे परियोजना को मंजूरी दी थी।पांच साल की अवधि के भीतर गंगा की सफाई के लिए ये करीब 21 हजार करोड़ रुपए की बड़ी कार्ययोजना बनाई गई थी। असल में गंगा की सफाई के लिए एक व्यापक नजरिया चाहिए और सबसे अहम काम ये है कि गंगा में ताजा पानी का प्रवाह बना रहे जिससे प्रदूषण में गिरावट आ सके।इसके लिये गाद की सफाई सबसे अहम है।

केंद्र सरकार भले ही ये तर्क दें कि अविरल गंगा के लिये नए बांध नहीं बनाए जाएंगे। लेकिन पैसे कमाने के लिये नये रास्ते तलाश लिए गए हैं। गंगा जल मार्ग के लिए भारी निवेश किया जा रहा है और बहुराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियां वाराणसी से हल्दिया तक गंगा वॉटर वे पर काम कर रही हैं। धार्मिक और अंधविश्वासों के शिकंजे में जकड़ी गंगा का प्रवाह कचरों से पहले ही बाधित है। वहीं फैक्ट्रियों से निकले कचरे ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा है। ऐसे में हम इस नदी को मोक्षदायिनी कहकर अनुष्ठानिक या मुनाफादायिनी कहकर अपनी कॉरपोरेटी प्यास भले ही बुझा लें। लेकिन सच्चाई ये है कि गंगा को दशकों से खुद अपनी मुक्ति की तलाश है। एक मां को उसका जीवन लौटाने का अभियान चलाया जाना चाहिये न कि उसकी लहरों को निवेश के नए प्रवाहों पर मोड़ने का।

मयंक सिंह, एपीएन

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