प्रशांत भूषण का विवादों से रिश्ता पुराना है। पेशे से वो एक बड़े वकील हैं लेकिन उनकी छवि किसी राजनीतिक और कूटनीतिक पंडित से कम नहीं। न्यायाधीशों समेत किसी पर भी बेबुनियाद आरोप लगाना उनके व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। हाल ही में उन्होंने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से भी अव्यावहारिकता की थी। लेकिन जस्टिस दीपक मिश्रा ने उन्हें माफ कर दिया। लेकिन अब उसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर एक्शन लिया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मेडिकल काउंसिल ब्राइबरी केस में वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के एनजीओ कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स की तरफ से स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम द्वारा मामले की जांच कराए जाने वाली याचिका खारिज कर दी। यही नहीं कोर्ट ने शुक्रवार को इस याचिका को खारिज करते हुए एनजीओ पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए प्रशांत भूषण पर यह जुर्माना लगाया और इस रकम को  सुप्रीम कोर्ट बार एसोशिएशन फंड में देने की बात कही। बता दें कि प्रशांत भूषण के एनजीओ ने मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। सीबीआई ने भी इस मामले में एक मुकदमा दर्ज कर रखा है। बता दें कि आरोप यह लगाया गया था कि एक कॉलेज को मान्यता देने के फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए दलाल विश्वनाथ अग्रवाल ने पैसे लिए। याचिकाकर्ता की मांग थी कि मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आरोप लग रहे हैं, इसलिए पूर्व चीफ जस्टिस की निगरानी में इस मामले की एसआईटी जांच होनी चाहिए। इससे पहले प्रशांत भूषण ने अपने बहस में कहा था कि  मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को इन मामलों पर कोई प्रशासनिक या न्यायिक निर्णय नहीं लेना चाहिए क्योंकि  सीबीआई की एफआईआर में कथित तौर पर उनका भी नाम है।

सीजेआई ने बदले में भूषण से प्राथमिकी की सामग्री को पढ़ने को कहा और उन्हें अपना आपा खोने के खिलाफ चेतावनी दी। भूषण के साथ याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता कामिनी जायसवाल भी थीं। जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘‘मेरे खिलाफ निराधार आरोप लगाने के बावजूद हम आपको रियायत दे रहे हैं और आप उससे इनकार नहीं कर सकते। आप आपा खो सकते हैं लेकिन हम नहीं।’’

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