बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने वाराणसी के सारनाथ स्थित केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षण संस्थान के 92वे अधिवेशन का उद्घाटन किया। तीन दिनों तक चलने वाले इस अधिवेशन का उद्घाटन सोमवार को किया गया। ये अधिवेधन भारतीय विश्वविद्यालय संघ की ओर से आयोजित किया गया था। अपने संबोधन में दलाई लामा ने परमाणु युद्ध, जलवायु बदलाव और शिक्षा व्यवस्था पर अपने विचार रखे।

यहां पर उन्होंने विश्व बंधुत्व का संदेश दिया और विश्व के सामने खड़ी चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त किए। दलाई लामा ने कहा कि अब वक्त आ गया है जब परमाणु हथियार विहीन दुनिया के बारे में गंभीरता से सोचा जाए। इस परिकल्पना को करुणा और अहिंसा से साकार किया जा सकता है। दुनिया की कुछ ताकतें परमाणु हथियारों के उपयोग के लिए उतावली सी हैं, जो दुखद है।

दलाई लामा ने कहा कि वर्तमान सदी संवाद की सदी है। इसलिए हमें अपनी सभी समस्याओं के समाधान के लिए संवाद का ही रास्ता अपनाना चाहिए और भारत देश इसका जीता जागता उदाहरण है। इस देश में विश्व के सभी प्रमुख धार्मिक मान्यताओं के लोग अनेक वर्षों से शांतिपूर्ण ढंग से रह रहे हैं।

दलाई लामा ने अपने विचार रखते हुए कहा, कि भारतीय शिक्षा पद्धति में विज्ञान और मनोविज्ञान दोनों का समावेश होना चाहिए। दुनिया में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसमें पुरातन ज्ञान और नए विज्ञान को एक साथ लेकर चलने की क्षमता है। दलाई लामा ने पर्यावरण और जलवायु बदलाव के दुष्परिणामों पर भी चिंता जाहिर की।

इस बारे में भारतीय विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष प्रो.पी.वी शर्मा ने कहा, कि ये दुनिया भारतीय शिक्षा के प्राचीन मूल्यों को अपनाना चाहती है। क्योंकि भारतीय शिक्षा व्यवहार और चरित्र से परिपूर्ण है। आज लोग दुनिया के अलग अलग कोनों में ज्ञान तो प्राप्त कर रहे हैं लेकिन चरित्र को अनदेखा किया जा रहा है।

ब्यूरो रिपोर्ट एपीएन

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