पर्यावरण गांधी और वृक्ष मित्र Sunder Lal Bahuguna, जिन्‍होंने दी प्रकृति से नाता जोड़ने की अनोखी सीख

Sunder Lal Bahuguna: पहाड़ में विकास के नाम पर हो रही छेड़छाड़ को वह पहले ही समझ गए थे। यही वजह रही कि चिपको आंदोलन के जरिये लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया।

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Sunder Lal Bahuguna birth anniversary

Sunder Lal Bahuguna: 70 और 80 का वो दशक जब पर्यावरण बचाने के लिए कई आंदोलन चरम पर थे। उत्‍तराखंड में ऐसा पर्यावरणविद् काम कर रहा था, जो पेड़ों को बचाने के लिए लगातार जुटा हुआ था और उसके साथ जुटी थी वो भीड़ जिनका मकसद पहाड़ और यहां की धरोहर यानी पेड़ों को हर कीमत पर बचाना था। इस महान शख्‍सियत का ही नाम सुंदरलाल बहुगुणा था।जिन्‍हें आज भी लोग पर्यावरण मित्र के नाम से जानते हैं।पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का आज यानी 9 जनवरी को जन्‍मदिन है।
पहाड़ में विकास के नाम पर हो रही छेड़छाड़ को वह पहले ही समझ गए थे। यही वजह रही कि चिपको आंदोलन के जरिये लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया।उनकी मेहनत रंग लाई और संपूर्ण विश्‍वभर में उन्‍हें पर्यावरण गांधी और वृक्ष मित्र के नाम से जाना जाने लगा।

Sunder Lal Bahuguna birth anniversary news.
Sunder Lal Bahuguna birth anniversary.

Sunder Lal Bahuguna: जानिए पढ़ाई से लेकर समाज से जुड़ने का सफर

Sunder Lal Bahuguna: सुंदरलाल बहुगुणा का पहाड़ से नाता बहुत गहरा था।जन्‍म से लेकर शिक्षा प्राप्‍त करने तक उन्‍होंने यहां लंबा समय गुजारा। इसके बाद आगे की पढ़ाई लाहौर से पूरी की। इसके साथ ही टिहरी रियासत की स्‍वाधीनता के लिए कड़ा संघर्ष भी किया। मात्र 17 वर्ष की आयु से समाज से जुड़े और दलित वर्ग के छात्रों के लिए टिहरी में ठक्‍कर बाप्‍पा हॉस्‍टल की स्‍थापना भी की।

Sunder Lal Bahuguna: संपूर्ण जीवन पर्यावरण को किया समर्पित

सुंदरलाल बहुगुणा ने संपूर्ण जीवन कुदरत की सेवा करने में लगा दिया। उन्‍होंने विश्‍व विख्‍यात वन्‍य जीवन के पक्षधर रिचर्ड सेंट बार्ब बेकर से मिलकर वृक्ष मानव संस्‍था की स्‍थापना की। टिहरी बांध निर्माण को लेकर आंदोलन और भूख हड़ताल भी की।
यही वजह रही कि चिपको आंदोलन के प्रणेता रहे सुंदरलाल बहुगुणा अपनी यह बात दोहराने से नहीं भूलते थे। ‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार’। 

Sunder Lal Bahuguna: हजारों किलोमीटर पैदल पदयात्रा की

सुंदरलाल बहुगुणा ने 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर, चंबा के लंगेरा गांव से हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किलोमीटर की पदयात्रा की। यह यात्रा 1983 में विश्वस्तर पर सुर्खियों में रही। 
पर्यावरण को बचाने के लिए ही 1990 में सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध किया था। उस बांध के खिलाफ रहे। उनका कहना था कि 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का बांध नहीं बनना चाहिए। उनका कहना है कि जगह-जगह जो जलधाराएं हैं, उन पर छोटी-छोटी बिजली परियोजनाएं बननी चाहिए। 

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