तिब्बत के आध्यात्मिक नेता Dalai Lama भारत में गुजारना चाहते हैं अपनी जिंदगी, जानिए क्यों

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तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने बुधवार को चीन के नेताओं की आलोचना करते हुए कहा कि वे विभिन्न संस्कृतियों की विविधता को नहीं समझते हैं और वहां हान जातीय समूह का बहुत अधिक नियंत्रण है।

माओत्से तुंग के समकालीन कम्युनिस्ट नेताओं के विचार अच्छे थे

86 वर्षीय दलाई लामा, टोक्यो में आयोजित एक ऑनलाइन समाचार सम्मेलन में भाग लिया, उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि “मैं माओत्से तुंग के समय से कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को जानता हूं। उनके विचार अच्छे थे, लेकिन कभी-कभी वे बहुत चरम और कड़े नियंत्रण की बात करते थे। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि नई पीढ़ी के नेताओं के तहत चीन में चीजें बदल जाएंगी।

चीन में हान समूह का वर्चस्व


तिब्बत और शिनजियांग के संबंध में भी हमारी अपनी अनूठी संस्कृति है, चीनी कम्युनिस्ट नेता, जो संकीर्ण सोच वाले हैं, वे विभिन्न संस्कृतियों की विविधता को नहीं समझते हैं। चीन में न केवल जातीय हान लोग शामिल हैं, बल्कि अन्य अलग-अलग समूह भी यहां है, लेकिन चीन में हान लोगों द्वारा बहुत अधिक नियंत्रण है।

चीन दलाई लामा को एक खतरनाक “विभाजनवादी” या अलगाववादी मानता है

1950 में अपने सैनिकों के इस क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया, जिसे वह “शांतिपूर्ण मुक्ति” कहता है। तब से तिब्बत देश के सबसे प्रतिबंधित और संवेदनशील क्षेत्रों में से एक बन गया है। बता दें कि बीजिंग दलाई लामा को एक खतरनाक “विभाजनवादी” या अलगाववादी के रूप में मानता है, जो 1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद भारत भाग गए थे। उन्होंने अपनी दूरस्थ, पहाड़ी मातृभूमि में भाषाई और सांस्कृतिक स्वायत्तता के लिए वैश्विक समर्थन प्राप्त करने के लिए दशकों तक काम किया है।

…कभी कम्युनिस्ट पार्टी पार्टी में शामिल होना चाहते थे दलाईलामा

दलाई लामा ने कहा कि उन्होंने व्यापक रूप से साम्यवाद और मार्क्सवाद के विचारों का समर्थन किया, हंसते हुए उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि कैसे उन्होंने एक बार कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने के बारे में सोचा था, लेकिन एक दोस्त ने उन्हें मना कर दिया। इस क्षेत्र में बढ़ते सैन्य तनाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि यह द्वीप चीन की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं का भंडार है, लेकिन अब इसका “बहुत अधिक राजनीतिकरण” हो गया है।

भारत में रहना पसंद करते हैं दलाईलामा

उन्होंने कहा, “आर्थिक रूप से ताइवान को चीन से बहुत मदद मिलती है। हालांकि दलाई लामा ने कहा कि उनकी चीन के नेता शी जिनपिंग से मिलने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा, मैं बूढ़ा हो रहा हूं इसलिए पुराने दोस्तों को देखने के लिए फिर से यात्रा करना चाहता हूं, लेकिन ताइवान से बचेंगे, क्योंकि इसके और चीन के बीच संबंध काफी नाज़ुक है। हाल के वर्षों में भारत में कई घटनाक्रमों के बाद भी उन्होंने धार्मिक सद्भाव के केंद्र के रूप में इसकी प्रशंसा करते हुए कहा, “मैं यहां भारत में शांति से रहना पसंद करता हूं।”

धर्म का भी राजनीतिकरण किया जा रहा है

उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि सभी धर्मों का एक ही संदेश है। सभी धर्म प्रेम का संदेश देते हैं और एक अलग दार्शनिक विचार रखते हैं। समस्या ये है कि राजनेता या कुछ अर्थशास्त्री … धर्म के इस अंतर का उपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं। ऐसे में धर्म का भी राजनीतिकरण किया जाता है।

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