~पल्लवी सिंह

जिम्बाब्वे इस समय राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है। यहाँ सेना ने तमाम सरकारी महकमों पर अपना कब्जा जमा लिया है। हालांकि सेना ने इसे ‘तख्तापलट’ कहने से भी इनकार कर दिया है। खबर है कि राष्ट्रीय प्रसारक ‘जेडबीसी’ के मुख्यालय पर सैनिकों ने कब्जा कर लिया है और राजधानी हरारे में कई जगह विस्फोट भी किया है। जबकि सेना के एक प्रवक्ता ने इस बाबत सरकारी चैनल पर तख्तापलट की खबर को गलत बताया है।

राजधानी हरारे में मौजूद नेशनल ब्रॉडकास्‍टर्स के दो कर्मचारियों के मुताबिक, बुधवार देर रात सेना ने पूरे ऑफिस को अपने कब्‍जे में ले लिया। खबरें ये भी आ रही हैं कि राष्‍ट्रपति भवन को भी सेना ने अपने कब्‍जे में ले लिया है। राजधानी की सड़कों पर आर्मी के टैंक और वाहनों ने रास्‍तों को रोक दिया है। जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति का घर सैनिकों से घिरा देखा गया है। वहां गोलियों की आवाज भी सुनी गई हैं। लेकिन ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि 37 साल का शासन जाते देख खुद की रक्षा के लिए फायरिंग की गई है।

वहीं सेना का कहना है कि वो जो कुछ भी कर रहे हैं वो राष्ट्रपति राबर्ट मुगाबे  और उनके परिवार को सुरक्षित रखने के लिए कर रहे हैं। सेना का कहना है कि हम केवल अपराधियों को निशाना बना रहे हैं। वहीं सेना के जवानों को राजधानी में राहगीरों को मारते और सेना के तीन वाहनों में गोला बारूद भरते देखा गया है।

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राबर्ट मुगाबे  की पत्नी ग्रेस के कारण भी है यह आपातकाल

बता दें की जिम्बाब्वे में जो हो रहा है वो एक दिन का नहीं है। इस घटना की एक और मुख्य पात्र राष्ट्रपति मुगाबे की बीवी और फर्स्ट लेडी ग्रेस मुगाबे(52) भी हैं। माना जा रहा है कि ग्रेस मुगाबे ही अपने पति के बाद जिम्बाब्वे  की राष्ट्रपति बनने की कोशिश में हैं। जबकि सेना की माने तो अगला राष्ट्रपति, निवर्तमान उपराष्ट्रपति एमरसन मनांगाग्वा हो होना चाहिए था। पर पिछले सप्ताह ही मुगाबे ने उपराष्ट्रपति मनांगाग्वा को बर्खास्त कर दिया जिसके बाद से सेना और 93 वर्षीय नेता के बीच तनाव बढ़ गया।

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इसके बाद से सेना और सेनाअध्यक्ष चिवेंगा लगातार मनांगाग्वा की वापसी की मांग कर रहे थे पर मुगाबे ने ऐसा करने से भी मना कर दिया।

वहीं यहां की एक ताकतवर यूथ विंग ‘जेडएनयू-पीएफ’(ZANU-PF) लगातार ग्रेस के पक्ष में रही है। इस ग्रुप का कहना है कि सेना ने यह तख्तापलट कर अपना शासन स्थापित करने की कोशिश की है। जेडएएनयू-पीएफ ने कहा कि चिवेंगा का रुख ‘‘स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय शांति को बाधित करने वाला है… और यह उनकी ओर से राजद्रोह संबंधी आचरण की ओर इशारा करता है क्योंकि इसका मकसद विद्रोह को भड़काना है।’

जिम्बाब्वे की आर्थिक हालात का लगातार खराब होना

इंटरनेशनल मीडिया इस तख्तापलट को सेना और सरकार के बीच मतभेद के अलावा वहां के आर्थिक कारणों को भी इसका जिम्मेदार बता रहा है। बता दें कि इस समय जिम्बाब्वे की महंगाई दर हर महीने 50 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है। लगातार पिछले कुछ सालों से मुगाबे सरकार के गलत आर्थिक नीतियों  के कारण देश की अर्थव्यस्था डूब रही है।

उपराष्ट्रपति मनांगाग्वा की नीतियां और मुगाबे के बीच का टकराव

उपराष्ट्रपति मनांगाग्वा के रिश्ते वहां की सेना से काफी बेहतर रहे हैं क्योंकि वह खुद भी सेना से जुड़े हुए थे। उन्हें वहां का स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है  और जिम्बाब्वे में वह ‘दी क्रोकोडाइल’ के नाम से भी जाने जाते हैं। अतः सेना के इस तख्तापलट का एक कारण मुगाबे सरकार द्वारा इनकी बर्खास्तगी भी है।

साथ ही उपराष्ट्रपति मनांगाग्वा जिम्बाब्वे को इस आर्थिक आपतकाल से बचाने के लिए 2 दशक पहले निकाले गए व्हाइट फारमर्स को वापस लाना चाहते थे। इसके साथ ही मनांगाग्वा वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ से भी जिम्बाब्वे  सरकार के रिश्ते बेहतर बनाना चाहते थे जिससे कि आर्थिक मदद हो सके, पर मुगाबे इन तमाम नीतियों के खिलाफ थे।

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हालात खराब होने के मद्देनजर हरारे में अमेरिकी दूतावास ने अपने नागरिकों को चेताया है कि ‘‘जारी राजनीतिक अस्थिरता’’ के कारण वे ‘‘शरण ले लें।’’ इस विवाद ने मुगाबे के लिए ऐसे समय में बड़ी परीक्षा की घड़ी पैदा कर दी है, जब उनका स्वास्थ्य भी लगातार बिगड़ रहा है। हालांकि इस घटनाक्रम पर देश के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे का अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। वहीं सेना ने बयान जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति मुगाबे जहां भी हैं, सुरक्षित हैं।

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