बिल्डरों की धोखाधड़ी के शिकार कई उपभोक्ता हो चुके हैं। इस मसले से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैट उपभोक्ताओं को और मजबूत कर दिया है। कोर्ट ने उपभोक्ताओं को चार हथियार दिए हैं। जिसके इस्तेमाल से उपभोक्ता आसानी से बिल्डरों से निपट सकते हैं। पहला रेरा, दूसरा उपभोक्ता अदालत, तीसरा दिवालिया संहिता और चौथा रिट कोर्ट का क्षेत्राधिकार।

जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने सोमवार को दिए फैसले में साफ कर दिया है कि रियल स्टेट रेगुलेशन एक्ट (रेरा) फ्लैट खरीदार को उपभोक्ता अदालत में जाने से नहीं रोकता।

कोर्ट ने बिल्डर बायर एक्ट में लिखी शर्तों को भी नहीं माना और कहा कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रावधान रेरा कानून के अनुषंगी हैं। उसमें इस बात का कोई प्रतिबंध नहीं है कि रेरा अनुबंध होने के बाद खरीदार फ्लैट प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता अदालत नहीं जा सकता।

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कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह से दिवालिया संहिता कानून की धारा 7,9 के तहत फ्लैट देने में विफल रहने पर बायर दिवालिया घोषित करने के लिए एनसीएलटी जा सकता है। हालांकि, इसमें संशोधन किया गया है।

अब इन प्रावधानों का सहारा लेने लिए 100 बायर होने चाहिए या उसका कुल डिफॉल्ट 1 करोड़ रुपए होना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा लॉकडॉउन के दौरान किए गए इन संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सर्वोच्च अदालत इन प्रावधानों की वैधानिकता की जांच कर रही है।

चौथा हथियार रिट कोर्ट है, जो बिल्डर को आदेश दे सकता है कि वह बायर को फ्लैट की डिलीवरी दे। आम्रपाली और यूनिटेक के मामले उस क्षेत्राधिकार के ताजा उदाहरण हैं। सैकड़ों फ्लैट बायर की तकलीफों को देख कोर्ट ने सख्त कारवाई करते हुए दोनों बिल्डरों को जेल भी भेज दिया था।

बता दें कि बिल्डरों की धोखाधड़ी के कारण कई घर खरीददार आत्महत्या कर चुके हैं। इस बात को मद्दे नजर रखते हुए सुप्रीम कोर्ट अब हल निकालने में जुटा हुआ है।

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