Supreme Court और HC में कितने दिन होता है काम और कितने दिन आराम? यहां जानें अदालतों की छुट्टियों को लेकर क्यों छिड़ी है बहस…

देश की सबसे बड़ी अदालत Supreme Court में एक साल में कामकाज करने के लिये 193 कार्य दिवस होते हैं, वहीं, उच्च न्यायालय औसतन 210 दिनों के लिये कार्य करते हैं जबकि ट्रायल कोर्ट (जिला न्यायालय) 245 दिनों के लिये कार्य करते हैं।

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Supreme Court on The Kerala Story
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देश के न्यायालयों में लगातार बढ़ रहे मामलों को लेकर जारी बहस के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में होने वाले वार्षिक शीतकालीन अवकाश (Winter Holidays) के दौरान अवकाश पीठ (Vacation Bench) नहीं होगी। इस समय देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टियां चल रही हैं जो 2 जनवरी 2022 तक जारी रहेंगी।

इससे पहले भी संसद में भी देश के न्यायालयों में ज्यादा छुट्टियों का मामला उठता रहा है। हालांकि कोर्ट में होने वाली इन छुट्टियों की शुरुआत भारत में जब अंग्रेजों का शासन होता था तब कि गई थी।

15 दिसंबर 2022 को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में न्यायालयों में लंबी छुट्टियों को लेकर कहा था कि “देश के लोगों में यह भावना है कि अदालतों को जो लंबी छुट्टियां दी जाती हैं, वह न्याय मांगने वालों के लिए बहुत सुविधाजनक नहीं है।“ रिजिजू ने आगे कहा कि यह उनका दायित्व और कर्तव्य है कि वे न्यायपालिका को इस सदन का संदेश या भावना बताएं।

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Supreme Court में होने वाले अवकाश

देश की सबसे बड़ी अदालत Supreme Court में एक साल में कामकाज करने के लिये 193 कार्य दिवस होते हैं, वहीं, उच्च न्यायालय औसतन 210 दिनों के लिये कार्य करते हैं जबकि ट्रायल कोर्ट (जिला न्यायालय) 245 दिनों के लिये कार्य करते हैं।

देश में उच्च न्यायालयों (सुप्रीम कोर्ट और High Court) के पास सेवा नियमों के अनुसार अपने-अपने कैलेंडर बनाने की शक्ति है। इसका अर्थ ये हुआ कि ये न्यायालय अपनी मर्जी से अपने काम करने के दिनों को निर्धारित कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में हरेक साल दो लंबी अवधि के अवकाश होते हैं, जिसमें ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश, लेकिन इन छुट्टियों के दौरान भी तकनीकी रूप से पूरी तरह से कोर्ट के कामकाज को बंद नहीं किया जाता है।

अवकाश पीठ (Vacation Bench)

सुप्रीम कोर्ट में गठित होने वाली अवकाश पीठ CJI द्वारा बनाई जाती है। अवकाश के दौरान भी याचिकाकर्ता देश की सबसे बड़े न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं यदि न्यायालय यह निर्णय लेता है कि याचिका में एक ‘बहुत जरूरी’ मामले को उठाया गया है, तो अवकाश पीठ मामले के गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करती है। आम तौर पर जमानत, बेदखली जैसे मामलों को अवकाश पीठों के सामने प्राथमिकता दी जाती है।

CJI Chandrachud Jpeg
CJI DY Chandrachud

छुट्टी के दौरान भी न्यायालयों के लिये कुछ जरूरी मामलों की सुनवाई करना आम बात है। जैसे वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ग्रमी की छुट्टियों के दौरान राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना के लिये संसद द्वारा पास किए गए संवैधानिक संशोधन की चुनौती पर सुनवाई की। इसके अलावा वर्ष 2017 में एक संविधान पीठ ने ग्रमी की ही छुट्टियों के दौरान तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाले मामले में छह दिन तक सुनवाई की थी।

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क्या है कानूनी प्रावधान?

सुप्रीम कोर्ट के नियम, 2013 के आदेश II के नियम 6 के तहत CJI ने गर्मी की छुट्टियों के दौरान जरूरी मामलों की सुनवाई और नियमित सुनवाई के लिए पीठों (Benches) को नामित कर सकता है। इसी नियम में कहा गया है कि CJI गर्मी या सर्दियों की छुट्टियों के दौरान तत्काल सुनवाई के योग्य सभी मामलों की सुनवाई के लिये एक या एक से अधिक जजों की नियुक्ति कर सकता है, जो इन नियमों के तहत सिंगल जज द्वारा सुने जा सकते हैं या फिर जब भी आवश्यक हो, भारत का मुख्य न्यायाधीश छुट्टी के दौरान जरूरी मामलों की सुनवाई के लिये एक खंडपीठ भी नियुक्त कर सकता है, जिसमें सुनवाई जजों की एक पीठ द्वारा की जानी चाहिये।

क्यों लंबी छुट्टियों को लेकर उठ रहे हैं सवाल?

कोर्टों में होने वाली लंबी छुट्टियों से न्याय मांग रहे लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही मामलों के फैसले में हो रही देरी और न्यायिक कार्यवाही की धीमी गति के कारण भी लंबी छुट्टियां की लगातार आलोचना होती है।

ब्रिटिश शासन की छाप

भारत की कोर्टों में लंबी छुट्टियों की शुरुआत शायद इसलिये हुई थी क्योंकि भारत के संघीय न्यायालय (Federal Courts) के लिए यूरोप से आने वाले न्यायाधीशों के अनुसार, भारत में गर्मी के समय में काफी गर्मी रहती थी और इसी प्रकार क्रिसमस के लिए भी लंबे शीतकालीन अवकाश का प्रावधान किया गया था।

देश में लगातार बढ़ते हुए मामलो को देखते हुए वर्ष 2000 में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों की सिफारिश करने के लिये बनी न्यायमूर्ति मालिमथ समिति ने सुझाव दिया था कि अवकाश की अवधि को 21 दिनों तक कम किया जाना चाहिये। मालिमथ समिति ने सुप्रीम कोर्ट के लिये 206 दिन और उच्च न्यायालय के लिये 231 दिन काम करने का सुझाव दिया गया था।

सुधार की भी कोशिश

2009 में आई भारत के विधि आयोग की 230वीं रिपोर्ट में भी इस प्रणाली में सुधार को लेकर बात की गई थी। विधि आयोग की रिपोर्ट में अप्रत्याशित रूप से बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए सुझाव दिया गया था कि उच्च न्यायपालिका में छुट्टियों को कम-से-कम 10 से 15 दिनों तक कम किया जाना चाहिये और न्यायालय के काम करने के घंटों में कम-से-कम आधा घंटा बढ़ाया जाना चाहिये।

इन सिफारिशों को लेकर कुछ असर तो हुआ लेकिन वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने नए नियमों को अधिसूचित जिनके अनुसार गर्मियों के अवकाश की अवधि जो पहले 10 सप्ताह तक होती थी के बारे में कहा गया था की अब गर्मियों की छुट्टियां सात सप्ताह से अधिक नहीं होगी।

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