Allahabad HC: बेटिकट यात्री पकड़े जाने के मामले में कोर्ट का फैसला, चालक की बर्खास्‍तगी रद्द

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Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेटिकट यात्री पकड़े जाने और निर्धारित से कम दूरी तक यात्रा कर सरकार को नुकसान पहुंचाने के आरोप में श्रम अदालत की ओर से बस ड्राइवर की बर्खास्तगी को मनमाना पूर्ण और अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यात्रियों को भड़काकर जांच टीम की कार्रवाई में बाधा डालने का गंभीर आरोप है। इसलिए बिना दंड दिए नहीं छोड़ा जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि याची को बकाए वेतन का केवल 40 फीसदी का ही भुगतान किया जाएगा, जबकि अन्‍य विभागीय परिलाभों में किसी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी।

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Allahabad HC: 4 माह में भुगतान करने के निर्देश

कोर्ट ने राज्य सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक को निर्देश दिया, कि याची को चार माह में भुगतान करें।
कोर्ट ने कहा कि याची 17 सितंबर 91 को बर्खास्त किया और श्रम अदालत ने 2 दिसंबर 2006 को बर्खास्तगी को सही ठहराया। याची के पक्ष में दी गई विभागीय जांच पर अपना निष्कर्ष तक नहीं दिया। इतने अंतराल के बाद मामले पर पुनर्विचार करने के लिए वापस भेजना न्याय हित में नहीं होगा।

यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने सेवानिवृत्त ड्राइवर लहरी सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची बस लेकर 8 मार्च 90 को खुर्जा से अलीगढ़ जा रहा था। टीम ने जांच की, तो बस में 21 यात्री बेटिकट मिले। 15 यात्रियों का पूरा विवरण ही नहीं दिया था। कंडक्टर और ड्राइवर ने यात्रियों को भड़का कर जांच में व्यावधान उत्पन्न किया। बिल पर हस्ताक्षर करने से इंकार किया।

करीब 306 किलोमीटर जाना था, लेकिन महज 26 किलोमीटर ही सफर पूरा किया। इससे सरकार को नुकसान पहुंचा। 12अप्रैल 1991 को विभागीय जांच रिपोर्ट सामने आई, बेटिकट यात्री के मामले में जांच में याची ड्राइवर को बरी कर दिया गया, लेकिन कार्रवाई में बाधा उत्पन्न करने का दोषी करार दिया गया। 17 सितंबर 91 को याची को बर्खास्त कर दिया गया। जिसे श्रम न्यायालय के पास भेजा गया। श्रम अदालत ने विभाग को नुकसान पहुंचाने वाली बात को सही माना।

Allahabad HC: आदेश न मानने पर कोर्ट सख्‍त, गाजियाबाद नगर आयुक्‍त को कारण बताओ नोटिस जारी

हाईकोर्ट ने गाजियाबाद के नगर आयुक्‍त से स्पष्टीकरण मांगा है, कि क्यों न कोर्ट आदेश की अवहेलना करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए ? कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए गाजियाबाद नगर आयुक्‍त और संपत्ति अधिकारी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है।

दरअसल पूरा मामला एक सेवानिवृत निगम के ड्राइवर की ओर से चाबी सौंपने को लेकर है। कोर्ट ने याची ड्राइवर को गैराज रूम की चाबी नगर आयुक्‍त को सौंपने का आदेश दिया था, लेकिन उन्‍होंने चाबी लेने इंकार कर दिया। चाबी संपत्ति अधिकारी को सौंपने को कहा।कोर्ट ने याची ड्राइवर को चाबी के साथ कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया। इसके साथ ही नगर आयुक्त और संपत्ति अधिकारी को भी तलब किया है। याचिका की सुनवाई अब 8 मार्च को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने विजय कुमार की याचिका पर दिया।
मालूम हो कि याची 2019 में सेवानिवृत्त हुआ था। उसे सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान नहीं किया गया। गैराज की चाबी अपने पास ही रखे रहा। कोर्ट के हस्तक्षेप से अधिकांश रकम का भुगतान किया, जबकि शेष अभी बकाया है।
याची का कहना है कि वह चाबी वापस करने गया था, लेकिन यह कहते हुए चाबी नहीं ली गई, कि उसे अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया जा चुका है। इस पर कोर्ट ने याची को भुगतान सहित चाबी सौंपने का हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही 15 फरवरी तक या उससे पूर्व चाबी नगर आयुक्त को सौंपने का आदेश दिया। बावजूद इसके नगर आयुक्त ने चाबी स्वीकार नहीं की। इसके बाद कोर्ट ने कड़ा रूख अपनाया।

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Allahabad HC: तथ्‍यों के आधार पर अपराध नहीं बनने पर याचिका खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो हिस्सों के बंटवारे में 8 हजार रुपये घूस लेने के आरोपी के खिलाफ आपराधिक केस और कोर्ट द्वारा जारी सम्मन पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट का साफ तौर पर कहना है, कि उपलब्ध तथ्यों के आधार पर कोई अपराध नहीं बनता है। याची को फंसाया गया है।
कोर्ट ने कहा, कि याची ने अपने बचाव में जो तर्क दिए हैं वे विवादित तथ्यों को लेकर हैं। जिन पर धारा 482 की अंतर्निहित शक्तियों का इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता। लिहाजा कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने लेखपाल सत्येंद्र सिंह की याचिका पर दिया है।

याची के खिलाफ हापुड़ के धौलाना थाने में भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। मेरठ की विशेष अदालत ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया है। जिसे चुनौती दी गई थी। याची का कहना है कि उसके खिलाफ अभियोग चलाने से पूर्व राज्य सरकार की अनुमति नहीं ली गई। वह निर्दोष है, उसे फंसाया गया है। विवेचना में एकत्र साक्ष्यों से उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता। इसलिए कार्रवाई रद्द की जाए।

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