सुप्रीम कोर्ट ने न्यायधीशों के खिलाफ घिनौना और निंदनीय आरोप लगाने के लिए कोर्ट की अवमानना ​​के लिए तीन वकीलों को 3 महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई है।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने पहले 27 अप्रैल को तीन वकीलों विजय कुरले, नीलेश ओझा और राशिद खान पठान को अदालत की अवमानना ​​का दोषी ठहराया था और एक मई को सजा के लिए सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।

जब 4 मई को इस मामले की सुनवाई हो रही थी, तो इस मामले में जस्टिस दीपक गुप्ता को हटाया जाने लिए अर्जी दाखिल की थी कि और य़ह भी कहा बेंच इस मामले में फैसला करने की जल्दबाजी में है।

हालांकि  जस्टिस दीपक गुप्ता का 06.05.2020 को कार्यालय समाप्त हो रहा है  इसलिए इस मामले को बेंच को सुनना पड़ा।

पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई के दोरान , रशीद खान पठान की ओर से कोई अधिवक्ता उपस्थित नहीं हुआ, रजिस्ट्री ने कंटेमनर काउंसलर श्री ईश्वरी लाल एस. अग्रवाल से एक व्हाट्सएप संदेश प्राप्त किया कि रशीद खान और के लिए लगभग 100 अधिकता पेश हो गए। वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सीमा जानना चाहता थे । बाद में, उन्होंने 11 अधिवक्ताओं की एक सूची भेजी जिसमें कंटेमनरों के लिए आवेदन किया गया था। हालांकि बाद में राशिद खान की ओर से पेश हुए एक अन्य वकील ने कहा कि मामले में कोई तात्कालिकता नहीं है और इसे लॉकडाउन समाप्त होने के बाद सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यह केवल मामले में देरी करने के लिए था और इस आवेदन को खारिज कर दिया।

तीनों कंटेमनरों ने भी दिनांक 27.04.2020 के फैसले को वापस लेने की मांग की थी और मुख्य आधार यह बताया कि  यह निर्णय बाल ठाकरे बनाम हरीश पिंपल्खुते और अन्य में दिए गए फैसले के विपरीत है और प्रति न्यायालय के अनुसार है और इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार नहीं है।

कंटेमनरों ने यह भी आग्रह किया कि नोटिस जसुतिस आर.एफ. की बेंच द्वारा जारी नहीं किया जा सकता था। नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन को इस मामले को पहले प्रशासनिक पक्ष पर मुख्य न्यायाधीश द्वारा निपटाया जाना चाहिए था।

पीठ ने हालांकि कहा कि “27.04.2020 तक जब फैसला सुनाया गया तो कोई शिकायत नहीं उठाई गई कि कंटेमनरों को उचित सुनवाई का मोका नहीं दिया गया।जबकि तीन रिकॉल  में उठाए गए सभी आधार लगभग समान हैं और सभी  में हमारे निर्णय की शुद्धता पर कई आधारों पर सवाल उठाए गए हैं।  और यदि ऐसा है तो कंटेमनरों के पास उचित उपाय है कि समीक्षा याचिका दायर करे, इसलिए उन्हों ने तीनों रिकॉल एप्लिकेशन को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इसमें उठाए गए आधार पर कोई राय व्यक्त किए बिना बनाए रखने योग्य नहीं थी । कोर्ट ने य़ह भी सलाह दी कंटेनरों को कानून के अनुसार समीक्षा याचिका दायर कर सकते है|

खंडपीठ ने आगे कहा कि “पश्चाताप करने वालों की ओर से पश्चाताप या माफी की कोई झलक नहीं दिखाई दी।”

चूंकि कंटेमनरों को सजा पर पश्चाताप  नहीं  था , इसलिए बेंच का विचार था कि यह कंटेनरों को बिना रियायत दिए बिना सजा तय की जाये । पीठ ने आगे कहा, “इस न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ लगाए गए घिनौने और निंदनीय आरोपों के मद्देनजर और किसी भी कंटेमनर द्वारा दर्शाए जा रहे पछतावे  पर विचार करने के पश्चात्‌ अनुसार हैं कि उन्हें दोषी माना जाता है|

हमने अपने फैसले में यह भी कहा है कि न्यायाधीशों को धमकाने के लिए कंटेमनरों द्वारा शिकायतें भेजी गई थीं, जिन्हें सजा के सवाल पर अभी तक श्री नेदुम्परा को नहीं सुना गया, इस लिए श्री नेदुम्परा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। ”

हालांकि, बेंच ने COVID-19 महामारी और लॉकडाउन की शर्तों को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया कि सजा 16 सप्ताह के बाद से लागू होगी जब विचारक महासचिव के सामने आत्मसमर्पण कर देंगे। अन्यथा, उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जाएगा।

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