केन्द्रीय महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है ये जानने के लिए एपीएन की टीम पीलीभीत जिला अस्पताल पहुंची… बाहर से देखने पर अस्पताल की इमारत ठीक नजर आती है लेकिन क्या अंदर भी स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर उतनी ही सुंदर है ये जानने के लिए हम अस्पताल के अंदर दाखिल हुए… अस्पताल पहुंचते ही हमारी मुलाकात डॉक्टर महावीर से हो गई… हमने उनसे यहां मरीजों को दी जाने वाली सुविधाओं और यहां की व्यवस्थाओं के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि पहले के मुकाबले सुविधाओं में बढ़ोतरी तो हुई है लेकिन अस्पताल में डॉक्टरों और स्टाफ की कमी है

डॉक्टर महावीर से बात कर जब हम निकले तो अस्पताल में हमें इलाज के लिए परेशान मरीज और उनके तीमारदार नजर आए… भले ही मरीज परेशान हो लेकिन अस्पताल में आवारा कुत्तों की मौज है… अस्पताल में जगह-जगह धमाचौकड़ी मचाते कुत्ते नजर आ जाते है… कोई उछल-कूद कर रहा था तो कोई अस्पताल में सुकून से नींद ले रहा था… ये तस्वीर बता रही थी कि अस्पताल प्रशासन मरीजों की सुरक्षा के प्रति कितना गंभीर है… अस्पताल के अंदर आराम फरमा रहे आवारा कुत्ते कभी भी मरीजों को अपना शिकार बना सकते है लेकिन ऐसी स्थिति में इस अस्पताल में मरीजों के इलाज की व्यवस्था भी नहीं है… काफी दिनों से अस्पताल में कुत्ता काटने पर लगने वाला रेबीज का इंजेक्शन नहीं है… ऐसे में यहां रेबीज इंजेक्शन के लिए आने वाले मरीज परेशान रहते हैं

पीलीभीत जिला अस्पताल में सिर्फ रेबीज के इंजेक्शन की ही कमी नहीं है बल्कि दूसरी बीमारियों की सामान्य दवाएं भी उपलब्ध नहीं है… दवा की पर्ची लेकर मरीज के परिजन दवा वितरण काउंटर पर जाते है लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगती है…

अस्पताल के दवा काउंटर से सस्ती दवाएं तो मिल जाती हैं लेकिन महंगी दवाएं यहां नहीं मिलती ऐसे में इन दवाओं के लिए उन्हें अस्पताल के बाहर खुले निजी मेडिकल स्टोर का रुख करना पड़ता है… मुफ्त इलाज की आस में आए मरीजों को यहां अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है

जिला अस्पताल में मरीजों को मुफ्त दवा का प्रावधान है लेकिन ये सुविधा कागजों में ही सिमटी हुई नजर आई… डॉक्टर पर्ची में जो दवा लिखते हैं उनमें से आधी दवाईयां ही दवा काउंटर पर मिलती है… वार्डों में भर्ती मरीजों को कितनी मुफ्त दवा मिल रही है ये जानने के लिए हमने वार्डों का जायजा लिया

पीलीभीत जिला अस्पताल में 130 बेड है… जिसमें प्रत्येक वार्ड में 30 बेड हैं…जब हम वार्डों का जायजा ले रहे थे तो हमारी नजर एक नर्स पास मरीजों और तीमारदारों की भीड़ पर पड़ी… पूछने पर पता चला कि वार्ड में 30 बेड पर 30 मरीज भर्ती हैं और उनकी देखभाल करने के लिए एक नर्स की ही तैनाती की गई है… पूरे अस्पताल में केवल 17 स्टाफ नर्स है जिनमें से रोजाना कोई ना कोई छुट्टी पर रहता है जिससे नर्सों के ऊपर काम का बड़ा दबाव रहता है…

नर्सों के जिम्मे सिर्फ मरीजों के देखभाल का ही काम नहीं होता बल्कि उन्हें कागजी लिखा पढ़ी भी करनी पड़ती है… मरीजों के समुचित देखभाल के लिए एक वार्ड में कम से कम तीन या चार स्टाफ नर्स होनी चाहिए लेकिन यहां एक वार्ड में केवल एक ही नर्स का होना बता रहा है कि यहां मरीजों की कितनी देखभाल हो रही होगी…

पूरे अस्पताल में स्टाप नर्स की कमी है वही जिला अस्पताल में एक वार्ड में केबल एक ही सफाई कर्मचारी है… कई एकड़ में बने अस्पताल में केवल चार सफाई कर्मचारी है वहीं इस अस्पताल में वार्ड ब्वॉय की भी कमी है… पूरे अस्पताल में डॉक्टर, नर्स, लैब टेक्नीशिय, वार्ड ब्वॉय समेत  सफाई कर्मियों की भी जबर्दस्त कमी है… यही वजह है यहां हर व्यवस्था चरमराई हुई है

जिला अस्पताल में डॉक्टरों और स्टाफ की कमी का असर साफ तौर पर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है… मरीज डॉक्टरों का इंतजार करते रहते है लेकिन डॉक्टर साहब बड़ी मुश्किल से मिलते हैं… डॉक्टर के इंतजार में परेशान मरीज जमीन पर जहां-तहां लेटे नजर आ जाते हैं

पीलीभीत के जिला अस्पताल में डॉक्टरों और नर्सों की कमी का आलम ये है कि रात के समय डाक्टर नहीं बल्कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी मरीजों का इलाज करते हैं…  अस्पताल प्रशासन की इस लापरवाही का खामियाजा भोले भाले गरीब लोगों को भुगतना पड़ता है… शासन प्रशासन इस पर कोई ध्यान नही दे रहा लेकिन अगर जल्द ही मामले को गंभीरता से नही लिया गया तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है…

डॉक्टरों और लैब टेक्नीशियन की कमी की वजब से पीलीभीत के जिला अस्पताल में जांच सेवाएं भी प्रभावित हो रही है… वैसे तो यहां सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे समेत कई आधुनिक जांच की सुविधा है लेकिन स्टाफ की कमी होने से जांच काफी धीमी गति से होती है… दिन भर मरीज लाइन में लग कर अपनी बारी का इंतजार करते है लेकिन कईयों की बारी आने से पहले ही जांच केन्द्र के बंद होने का वक्त हो जाता है… मरीजों को दूसरे दिन आने के लिए कहा जाता है लेकिन दूसरे दिन भी जांच हो जाए इसकी कई गारंटी नहीं… ऐसे में कई किलोमीटर दूर के ग्रामीण इलाकों से आए मरीजों की मुसीबत दोगुनी हो जाती है… लाचार मरीज परेशान होकर बहार से ही जांच कराने में भलाई समझते है

जिला अस्पताल में एनआरसी यानी पोषण पुनर्वास केंद्र भी है, यहां कुपोषित बच्चों को रखा जाता है.. यहां का जायजा लेने पर हमे सुविधाएं अच्छी दिखी…यहां भर्ती  प्रत्येक बच्चों के लिए डाइट चार्ट लगा हुआ है और उसी के मुताबिक बच्चों को पौष्टिक खाना दिया जाता है वहीं बच्चे की मां को भी खाना सहित प्रत्येक दिन के 50 रुपया दिए जाते हैं… बच्चों के खेलने के लिए यहां सुंदर प्ले वार्ड भी है और यहां किचिन सहित सभी व्यवस्थाएं अच्छी दिखी…

एनआरसी की व्यवस्थाओं का जायजा लेने के बाद हमने जिला अस्पताल के जनरल वार्ड का रुख किया

जनरल वार्ड का जायजा लेने के बाद हम टीबी वार्ड पहुंचे…यहां टीबी के मरीजों के इलाज के लिए 6 बेड की व्यवस्था है… टीबी वार्ड में गंदगी का अंबार लगा है और बदबू ऐसी कि यहां दो मिनट रुकना भी मुश्किल है

वैसे तो टीबी वार्ड में भर्ती मरीजों के मुताबिक यहां उन्हें सभी सुविधाएं मिल रही है लेकिन हकीकत तो ये है कि दी जा रही सुविधाएं स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं है…जब हमने अस्पताल में फैली अव्यवस्थाओं के बारे में जिला अस्पताल के सीएमएस से बात करना चाहा तो उन्होंने कैमरे के सामने बोलने से मना कर दिया लेकिन जब एपीएन ने स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर सीएमओ से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि उनकी अभी यहां नई पोस्टिंग हुई है इसलिए जो भी खामियां बताई जा रही है उसकी जल्द ही जांच की जाएगी

केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी के संसदीय क्षेत्र के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पर पूरे पीलीभीत जिले के स्वास्थ्य की देखभाल की जिम्मेदारी है… लेकिन उन जिम्मेदारियों को निभाने लायक यहां ना तो क्षमता है और ना ही यहां के स्वास्थ्य प्रशासन में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की इच्छाशक्ति ही नजर आती है… ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यहीं है कि आखिर कैसे पूरा होगा स्वस्थ भारत और स्वस्थ पीलीभीत का सपना ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here