महिलाओं की सुरक्षा को लेकर समय के साथ विश्व की सभी सरकारें बेहतर से बेहरत कानून बना रही हैं। समय के साथ महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत किया जा रहा है। लेकिन दुनिया में मानव अधिकार में सबसे खराब रिकॉर्ड रखने वाला देश तुर्की महिलाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।

पिछले शुक्रवार की आधी रात को तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने एक फरमान जारी किया। इसमें कहा गया कि ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर इस्तांबुल समझौते’ को अब तुर्की की स्वीकृति नहीं रहेगी। बता दें कि, ये 10 साल पुरान समझौता था जो कि 11 मई, 2011 को हुआ था। वहीं पांच मई, 1949 को लंदन में बनी ‘यूरोपीय परिषद’ के तत्वावधान में हुआ था। फ्रांस के श्त्रासबुर्ग में स्थित मुख्यालय वाली इस संस्था का मुख्य काम है यूरोपीय हित के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर बहस के लिए मंच प्रदान करना और आर्थिक-सामाजिक प्रगति हेतु उनके बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना। पर तुर्की की सरकार ने इसे एक पल में खत्म कर दिया।

इस समझौते मे तुर्की सहित 47 देश आते हैं। समझौते पर सबसे पहले तुर्की ने ही साइन किया था और अब तुर्की ही इसे सबसे पहले खत्म कर रहा है। वहीं जब पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही थी, लोग महिलाओं की मजबूत अधिकारों की बात कर रहे थे तब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन एक ने बयान जारी कर कहा था कि, “औरत सबसे पहले मां है और बच्चे के लिए उसका घर है।” मतलब साफ है रेचेप का कहना है कि ,महिलाओं को घर में रहना चाहिए काम नहीं करना चाहए।

रेचेप तैय्यप अर्दोआन के खिलाफ महिलाएं सड़कों पर उतर गई हैं। लोग जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं। जब पुरी दुनिया में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री बन रही हैं तो तुर्की उनके अधिकारों का हनन कर रहा है। तुर्की बता रहा है कि, उन्हें घर में रहना चाहिए। इस तरह के बयान बताते हैं कि, इस्लामिक देशों की महिलाओं के प्रति क्या मानसिकता है।

महिलाओं को प्रति 8 मार्च को दिए घटिया बयान के बाद 19 मार्च की रात रेचेप ने अध्यादेश जारी किया कि उनका देश महिलाओं की सुरक्षा-संबंधी ‘इस्तांबुल कन्वेशन’ से अपने आप को मुक्त कर रहा है। बता दें कि, महिलाओं के साथ हिंसा की रोकथाम और ऐसी हिंसा से लड़ने का यह समझौता तुर्की के ही सबसे बड़े शहर इस्तांबुल में हुआ था। तुर्की ही पहला देश था, जिसने 11 मई, 2011 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और विपक्षी नेताओं ने अर्दोआन के इस फरमान की निंदा की। उन्होंने कहा कि तुर्की की संसद द्वारा अनुमोदित अंतरराष्ट्रीय समझौते से बाहर आना अवैध है। बता दे कि, तुर्की में महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने वाले, घरेलू हिंसा करने वालों को वहां कानून बहुत जल्दी माफ कर देता है। इस्तांबुल समझौते से तुर्की की महिलाओं को ताकत मिली थी जिसे रेचेप ने छीन लिया।

तुर्की के ‘वी विल स्टॉप फेमिसाइड’ नामक संस्था के मुताबिक, 2020 में कम-से-कम 300 महिलाएं मार दी गई थीं। इनमें से ज्यादातर की हत्या उनके ही सहयोगियों ने की थी। इनके अलावा 171 और महिलाएं संदिग्ध हालात में मृत पाई गईं। समझौता खत्म होने के बाद महिलाओं के लिए खतरा और बढ़ गया है। इसलिए महिलाएं अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतर गई हैं।

अब सवाल उठ रहा है कि, जब पूरी दुनिया में महिलाएं इतिहास रच रही हैं। चांद पर जा रही हैं तो तुर्की में मामूली से अधिकारों को खत्म क्यों किया जा रहा है। इसके पीछे दो कारण सामने आए हैं। पहला कि, अर्दोआन हाल में राजनीतिक रूप से ज्यादा कमजोर हो गए हैं। ऐसे में अपना समर्थन बढ़ाने के लिए वो रूढ़िवादी एके पार्टी और कट्टरपंथी फेलिसिटी पार्टी के कट्टरपंथियों की मांगों के आगे झुक गए हैं। दूसरा एके पार्टी तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन की है। उनके पार्टी के नेताओं का कहना है कि, ‘इस्तांबुल कन्वेशन’ का हिस्सा होना तुर्की जैसे एक इस्लामी देश के लिए शोभा नहीं देता। सत्ता की लालच मेें रेचेप ने महिलाओं को अधिकारों से वंचित कर दिया है।

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