बॉक्सिंग में एमसी मैरीकॉम ने हिंदुस्तान के लिए नाम कमाया और मैरीकॉम को देख कर कई महिलाएं इतनी ज्यादा प्रभावित हुई कि बस दिल में देश के लिए मेडल्स जीतने का जूनुन पैद हो गया। शिव की नगरी काशी में एक ऐसी ही खिलाड़ी है जो समाज के सारे मिथकों को तोड़ते हुए अपने मेहनत के बल पर बॉक्सिंग रिंग में अच्छे अच्छों को धूल चटा रही है। ज्योति नाम की यह महिला खिलाड़ी वाराणसी के संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम में पुरुष खिलाड़ियों के साथ ट्रेनिंग लेकर अपने गांव का नाम पूरे देश में रोशन कर रही है। ज्योति के हौसले को देखकर अब कई लड़कियां इस खेल में अपने मुक्के का दम दिखा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के साथ खेलो इण्डिया का नारा तो खूब दिया लेकिन देश में सामाजिक सोच में पिछड़ापन होने की वजह से आज भी कई बेटियां ऐसी हैं जो न तो सही तरीके से पढ़ाई कर पाती है न ही खुलकर अपने सपनों को जी पाती है। लेकिन इन्ही में कुछ ऐसी खास बेटियां होती हैं जो भीड़ से अलग कुछ कर जाती है।

वाराणसी के रमना गांव की ज्योति पांडेय की पांच बहने हैं और ज्योति इनमें सबसे बड़ी है। ज्योति के पिता किसान है और मां गृहिणी है। ज्योति ने बॉक्सिंग सिखाने की ठानी। जिसमें ज्योति के परिवार के लोगो ने उसकी मदद की। ज्योति की मानें तो पहले जब वह इस खेल में आई तो आस -पास के लोगो को उसका लड़कों के साथ खेलना पसंद नहीं था। पड़ोसियों के ताने भी ज्योति को खूब सुनने पड़ते थे। लेकिन ज्योति की लौ तो जगमगाने के लिए थी। वो इन छोटी हवाओं के थपेड़ों से बुझने वाली कहां थी। ज्योति अपने मुक्के की ताकत से 5 बार स्टेट चैंपियनशीप में गोल्ड मेडल, राज्य में बेस्ट बॉक्सर, बेस्ट प्रोमिसिंग खिलाड़ी के साथ -साथ दो बार ऑल इण्डिया यूनिवर्सिटी गेम में मेडल जीतकर अपने गांव और अपने शहर का नाम रौशन कर चुकी है।

ज्योति के कोच दिलीप सिंह की माने तो ज्योति जब स्टेडियम में बॉक्सिंग सिखने आई तो वो बिल्कुल अकेली थी। लेकिन कहते है न लोग आते गए कारवां बनता गया। देश में आज बेटों के मुकाबले बेटिया किसी से भी पीछे नहीं है। बेटियां बेटों को कड़ी टक्कर दे रही है। ऐसे में ज्योति का हौसला देख ज्योति को कोसने वाला समाज ही आज ज्योति की तारीफ कर रहा है।

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