उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में लागू लव जिहाद कानून की खिलाफत करते हुए कई समाज सेवी सामने आरहे हैं। विशाल ठाकरे एवं अन्य और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सितलवाड़ के गैर-सरकारी संगठन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने कानून के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है।
याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “कानून पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाया जा सकता है। हां पर इसकी संवैधानिकता की जांच जरूर की जा सकती है।” इस मसले पर कोर्ट ने राज्यों को नोटिस जारी किया है और जवाब तलब किया है।
उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में लागू लव जिहाद कानून के प्रावधान के अनुसार, शादी के लिए धर्म परिवर्तन की पूर्व अनुमति को आवश्यक बनाया गया है। इसी प्रावाधन को खत्म करने की मांग की जारही है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने अपना रूख साफ कर दिया है।
सितलवाड़ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने दलील दी कि पूर्व अनुमति के प्रावधान दमनकारी हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के अध्यादेश के आधार पर पुलिस ने कथित लव जिहाद के मामले में निदोर्ष लोगों को गिरफ्तार किया है। सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति बोबडे ने याचिकाकतार्ओं को संबंधित उच्च न्यायालय जाने को कहा, लेकिन सिंह और वकील प्रदीप कुमार यादव की ओर से यह बताये जाने के बाद कि दो राज्यों में यह कानून लागू हुआ है और समाज में इससे व्यापक समस्या पैदा हो रही है। वकीलों ने दलील दी कि मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे अन्य राज्य भी ऐसे ही कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई को लेकर हामी भरते हुए दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये।
बता दें कि, देश में लंबे समय से जबरन धर्म परिवर्तन की खबरे सामने आ रही हैं। बालिकाओं को प्रेम जाल में फसा कर शादी का झासां देकर जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता था। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने लव जिहाद के नाम पर कानून बनाया है। वहीं मध्यप्रदेश में अध्यादेश लाया गया है।
गौरतलब है कि, इस कानून के तहत अपराधी को 10 साल तक की सजा हो सकती है। इसके तहत जबरन, लालच देकर या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराने को भी गैर जमानतीय अपराध माना गया है। इसका मतलब है कि पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार करके पूछताछ कर सकती है। तोहफा, पैसा, मुफ्त शिक्षा, रोजगार या बेहर सुख-सुविधा का लालच देकर भी धर्म परिवर्तन कराना अपराध है।
धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति के माता-पिता या रिश्तेदार भी केस दर्ज करा सकते हैं। अध्यादेश में सामान्य तौर पर अवैध धर्म परिवर्तन पर पांच साल तक की जेल और 15 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन अनुसूचित जाति-जनजाति की नाबालिग लड़कियों से जुड़े मामले में 10 साल तक की सजा का प्रावधान और 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। पहले पहले के धर्म में दोबारा अपनाने को धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा। अवैध धर्म परिवर्तन कराने का दोबारा दोषी पाए जाने पर सजा दो गुनी हो जाएगी।