सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले में गुरुवार (26 जुलाई) को सुनवाई के दौरान त्रावणकोर राजपरिवार की ओर से दलीलें रखी गयीं। इन दलीलों में आरोप लगाया गया कि यह याचिका हिंदू धर्म को नुकसान पहुंचाने के मकसद से दाखिल की गयी है।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ रखी गयी दलीलों में गुरुवार (26 जुलाई) को एक नया आयाम देने की कोशिश की गयी। त्रावणकोर पंडालम राज परिवार की ओर से वरिष्ठ वकील के राधा कृष्णन ने कोर्ट के सामने तर्क रखा कि याचिकाकर्ता की भगवान अयप्पा में कोई रुचि नही है और यह याचिका केवल मंदिर की गरिमा पर हमला करने के लिए दाखिल की गई है। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में ऐसे लोग ये भी याचिका ला सकते है कि गणेश शिव पार्वती के पुत्र हैं ही नहीं। वरिष्ठ वकील ने यह भी कहा कि कोर्ट को ऐसे धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए जिसे लोग पीढ़ियों से मानते आए हों।

मंदिर के मुख्य पुजारी की तरफ से वकील साईं दीपक ने दलीलें रखते हुए कहा कि यह मसला सामाजिक न्याय का नहीं है। मंदिर पर्यटन स्थल नहीं है। वहां आने की पहली शर्त है देवता में आस्था। जिन्हें देवता के सर्वमान्य स्वरूप में विश्वास नहीं, कोर्ट उनकी याचिका पर सुनवाई कर रहा है। 5 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सबसे ज़रूरी यह है कि धार्मिक नियम संविधान के मुताबिक भी सही हो। कौन सी बात धर्म का अनिवार्य हिस्सा है,  इस पर कोर्ट क्यों विचार करे? हम जज हैं, धर्म के जानकार नहीं।” जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने भी कहा कि “धार्मिक नियमों के पालन के अधिकार की सीमाएं हैं। यह दूसरों के मौलिक अधिकार को बाधित नहीं कर सकते।” इस पर मुख्य पुजारी की ओर से दलील दी गया कि “कानून मंदिर के देवता को जीवित व्यक्ति का दर्जा देता है। उन्हें भी मौलिक अधिकार हासिल हैं।” “हिंदू धर्म में देवताओं का दर्जा दूसरे धर्मों से अलग है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक आस्थाओं और सरकारी व्यवस्था के बीच एक किस्म का समझौता है। दोनों एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करते हैं।” इस पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने टिप्पणी की कि आपकी दलीलें वाकई प्रभावशाली हैं। सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में कोर्ट केवल संवैधानिक पहलुओं पर सुनवाई करेगा। इस मामले पर अब 31 जुलाई को सुनवाई होगी।

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