हिंदी साहित्य में एक और दीया बुझ गया। हिंदी के वरिष्ठ कथाकार, कवि और आलोचक दूधनाथ सिंह का गुरूवार रात निधन हो गया वो 81 वर्ष के थे । उन्होंने अपने पैतृक शहर इलाहाबाद में देर रात 12 बजे के करीब आखिरी सांस ली।  आज शाम को चार बजे इलाहाबाद के रसूलाबाद घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बता दें कि दूधनाथ सिंह पिछले एक साल से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे। दिनोंदिन बिगड़ती तबीयत को देखते हुए उन्हें 4 जनवरी को इलाहाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार रात करीब 12.06 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद साहित्य जगत के रचनाकार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

उनके परिजनों के अनुसार पिछले साल अक्तूबर माह में तकलीफ बढ़ने पर दूधनाथ सिंह को नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में दिखाया गया।  जांच में प्रोस्टेट कैंसर की पुष्टि होने पर उनका वहीं इलाज चला। करीब दो सप्ताह पहले उन्हें इलाहाबाद लाया गया। कल उनकी तबियत फिर खराब हो गई थी, इसके बाद उन्हें फीनिक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु की खबर मिलते ही उनके शुभचिंतक और साहित्यकार उनको देखने अस्पताल पहुंचने लगे।

भारत भारती जैसे सम्मान से नवाजे गए दूधनाथ सिंह अपनी रचना के लिए हिंदी साहित्य में खास पहचान रखते थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। दो साल पहले ही उनकी पत्नी निर्मला ठाकुर का निधन हो चुका है। दूधनाथ सिंह अपने पीछे दो बेटे-बहू, बेटी-दामाद और नाती-पोतों से भरा परिवार छोड़ गए हैं। दूधनाथ सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक रह चुके हैं। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना सहित सभी विधाओं में लेखन किया।  आखिरी कलाम, निष्कासन, सपाट चेहरे वाला आदमी, माई का शोक गीत, धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र, निराला: आत्महंता आस्था, और भी आदमी हैं, सुरंग से लौटते हुए, महादेवी और भुवनेश्वर समग्र उनकी अहम रचनाएं थीं। इससे पहले मशहूर शायर और ‘श्रीमद्भागवत गीता’ का उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले शायर अनवर जलालपुरी का 71 वर्ष की उम्र में एक अस्पताल में निधन हो गया था।

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