दहेज उत्पीड़न से जुड़ी आईपीसी की धारा 498ए के मामलों में शिकायत मिलने पर गिरफ्तारी करने या ना करने का फैसला अब पुलिस ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा कि ये तय करने का अधिकार पुलिस का है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अपने आदेश में गिरफ्तारी से पहले दहेज प्रताड़ना की जांच के लिए सिविल सोसायटी की कमेटी बनाने के दिशानिर्देश को हटा दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट इस तरह आपराधिक मामले की जांच के लिए सिविल कमेटी नियुक्त नहीं कर सकता और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति और उसके रिश्तेदारों के सरंक्षण के लिए जमानत के रूप में अदालत के पास अधिकार मौजूद है।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर राज्य के डीजीपी इस मुद्दे पर पुलिस अफसरों और कर्मियों में जागरुकता फैलाएं और उन्हें बताया जाए कि सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी को लेकर क्या सिद्धान्त बनाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत इस तरह कानून की खामियों को खत्म नहीं कर सकता। सिर्फ कार्यपालिका ही कानून बनाकर ऐसा कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अगर दोनों पक्षों में समझौता होता है तो कानून के मुताबिक वो हाईकोर्ट जा सकते हैं। अगर पति पक्ष कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करता है तो केस की उसी दिन सुनवाई की जा सकती है। गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CRPC की धारा 41 में गैर जमानती अपराध में गिरफ्तारी को लेकर संतुलन कायम किया गया है। मनमानी गिरफ़्तारी रोकने के लिए CRPC 41 में प्रावधान है कि किसी को गिरफ्तार करने या गिरफ्तार ना करने पर पुलिस को पर्याप्त कारण बताने होंगे।

पिछले साल जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने आदेश दिया था कि 498A के अंतर्गत की गई शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी। बल्कि हर ज़िले में परिवार कल्याण विभाग की स्थापना की जाएगी जिसकी रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी की जाएगी। इसके बाद कई समाजसेवी संस्थाओं ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी। सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा था कि हम कानून नहीं बना सकते हैं बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं। अदालत ने कहा था कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है।

एपीएन ब्यूरो

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