देशभर के 1125 केंद्रीय विद्यालयों में हर धर्म के छात्रों के लिए संस्कृत और हिंदी में “असतो मा सद्गमय’ की प्रार्थना अनिवार्य करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है या नहीं, इसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट के जजों की संविधान पीठ करेगी।  जबलपुर के वकील विनायक शाह ने केंद्रीय विद्यालयों में सभी छात्रों के लिए प्रार्थना के नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। पिछले साल 10 जनवरी को कोर्ट ने इस पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना संस्कृत में होने मात्र से किसी धर्म से नहीं जुड़ जाती है। “असतो मा सद्गमय’ धर्मनिरपेक्ष है। यह सार्वभौमिक सत्य के बोल हैं। इस पर जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि संस्कृत का यह श्लोक उपनिषद से लिया गया है। जवाब में मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर कोर्टरूम में लगे चिह्न पर भी संस्कृत में लिखा है- “यतो धर्मस्ततो जय:’। यह महाभारत से लिया गया है। इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि सुप्रीम कोर्ट धार्मिक है। संस्कृत को किसी धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।

इसके बाद जस्टिस नरीमन ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े इस मुद्दे पर संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए। पीठ गठित करने उन्होंने यह मामला चीफ जस्टिस के पास भेज दिया। याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालयों में सुबह गाए जाने वाले संस्कृत के गीत एक धर्म विशेष से जुड़े धार्मिक संदेश हैं। संविधान के अनुसार सरकार द्वारा संचालित कोई भी विद्यालय या संस्थान किसी भी विशिष्ट धर्म का प्रचार नहीं कर सकते। इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्रीय विद्यालय संगठन के संशोधित एजुकेशन कोड को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना लागू है। इस सिस्टम को नहीं मानने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को भी इसे मानना पड़ता है। मुस्लिम बच्चों को हाथ जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

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