भारतीय राजनीति में नेताओं के चाल और चरित्र पर उठते सवालों के बीच उनकी भाषा की मर्यादा भी खत्म होती दिख रही है। अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए नेता सस्ती और संस्कारहीन भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। जिस लोकतंत्र को दुनियाभर में भारत की पहचान माना जाता है उस लोकतंत्र के मंदिर में बैठने वाले नेता एक दूसरे को चोर, लुटेरा और अपराधी कहने तक से बाज नहीं आ रहे हैं।

राहुल गांधी ने राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चोर और कमांडर इन थीफ क्या कहा एक बार फिर नेताओं की भाषाई मर्यादा को लेकर प्रश्नचिह्न उठने शुरू हो गए।

जरूरी सवालों पर जारी बहस अकसर अपने मूल मुद्दे से भटकने लगती है। कुछ ऐसा ही राफेल डील को लेकर भी हो रहा है, जहां मामला आरोप-प्रत्यारोप से उतरकर तू-तड़ाक और तेरा-मेरा पर आ गया है।

देश की राजनीति में शब्दों की मर्यादा के गिरने का ये पहला प्रमाण नहीं है। चिट्ठी खोलेंगे, तो कई ऐसे मामले निकलकर आएंगे जहां सियासी मर्यादा को भूल और राजनीतिक शिष्टाचार को ताक पर रखकर नेता गाली-गलौच और अमर्यादित टिप्पणी पर उतर आए हैं। इनकी कहानी लिखने में स्याही खत्म हो जाएगी लेकिन स्याह अध्याय खत्म नहीं होंगे। भारतीय राजनीति में मर्यादा, नैतिकता, आदर्श, संस्कृति और परंपरा का ढिंढोरा पीटने वाले नेता जब कुसंस्कृति, अनैतिकता और अमर्यादित व्यहवार पर उतर आते हैं तो लोकतंत्र भी शर्मिंदा हो उठता है।

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