हरियाणा के अरावली के पहाड़ियों और जंगलों की जमीन पर अवैध कब्जे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खोरी गांव में अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। गांव में 10 हजार से अधिक घर हैं। जिसमें से 2 हजार घरों को ढहाया जा चुका है। संयुक्त राष्ट्र ने अब इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि घरों को तोड़ने से गांव वासी बेघर हो जाएंगे और काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र की टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करने जा रहा है। इस मुद्दे पर सोमवार को फिर सुनवाई होगी। इस याचिका में अरावली की पहाड़ियों और जंगलों की जमीन पर अवैध कब्जे वाले घरों को 19 जुलाई को ढहाए जाने वाले फैसले पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि जंगल की जमीन पर अतिक्रमण किसी भी सूरते हाल में मंजूर नहीं किया जाएगा।

जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की भूमिका कानून की रक्षा के साथ साथ जनता के बुनियादी अधिकारों का संरक्षण और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त मानवाधिकार कानूनों की रक्षा भी है। खोरी गांव में जो हो रहा है वह भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के उद्देश्यों और प्रावधानों के खिलाफ है।

विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना काल के इस भयंकर संकट में अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदाय के 20 हजार से ज्यादा बच्चे हैं। 5,000 से ज्यादा गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं। इनकी सुरक्षा और शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाए। लाइट पानी को काट दिया गया है यह पूरी तरह से अमानवीय है। इसका ध्यान रखा जाए।

बता दें कि याचिका में कहा गया है कि इतनी भारी संख्या में लोगों के बेघर होने से सरकार की समस्या और बढ़ेगी। सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर विचार करना चहिए। वहीं अगर यही हाल रहा तो 2022 तक देश में हर नागरिक को घर मुहैया कराए जाने का सरकार का संकल्प अधूरा रह जाएगा।

हरियाणा सरकार ने खोरी गांव से हटाए जाने वाले लोगों को वैकल्पिक तौर पर फ्लैट्स और जमीन मुहैया कराने की स्कीम दी है लेकिन गांववालों को ये स्वीकार नहीं है। बयान जारी करने वाले इन विशेषज्ञों में बालकृष्णन राजगोपाल, मैरी लॉलर, सेसिलिया जिमेनेज डेमरी, फर्नांद डि वेरेनेस, पेड्रो अरोजो अगुडो, ओलिवर डे शटर और कोंबू बॉली बेरी भी शामिल हैं।

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