समलैंगिक प्यार का इजहार अब तक बंद दरवाजों के पीछे से बाहर आने के लिए कुलबुला रहा है। समाज के नियम, कानून और नैतिकता को खुलेआम चुनौती दी जा रही है। गे और लेसबियन समुदाय देश के सर्वोच्च अदालत में तो अपने अधिकार के लिए जंग लड़ ही रहे हैं। वे सड़कों पर भी वर्जित आपसी प्यार का इजहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

गे हो या लैस्बियन। ये समाज के हाशिए पर आए लोग हैं। समाज में वे दोहरी जिंदगी जीते हैं। या यू कहें कि दोहरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर होते हैं। लोग इन्हें देख कर नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं। हमारे समाज में समलैंगिक संबंधों को हेयदृष्टि से देखा जाता है। आज तक हमारा समाज इन संबंधों को स्वीकार नहीं कर पाया है। समाज और धर्म के ठेकेदारों का मानना है कि आखिर एक युवक दूसरे युवक से कैसे प्यार और शादी कर सकता है। उसे तो युवती से ही प्यार करना चाहिए और युवती को भी हमेशा युवक से ही प्यार करना चाहिए।

समलैंगिक संबंधों को समाज हमेशा गलत मानता रहा है, लेकिन समलैंगिक संबंध रखने वाले लोग अब खुल कर सामने आने लगे हैं। समलैंगिक युवकयुवतियां अब परेड के माध्यम से अपने प्यार का खुल कर इजहार करने लगे हैं, न तो अब उन्हें किसी का डर है और न ही किसी की चिंता। अगर आप उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहते तो न करें। इन्हें आप के नाकभौं सिकोड़ने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि अब ये चल चुके हैं एक अलग रास्ते पर जहां इन की सब से अलग, सब से जुदा दुनिया है।

प्यार की परिभाषा सिर्फ महिला और पुरुष के प्यार तक सीमित नहीं है, प्यार किसी से भी हो सकता है। पुरुष को पुरुष से, औरत को औरत से। लेकिन ये तर्क समाज को मंजूर नहीं है। वैसे ये तर्क का विषय है भी नहीं। ये दिल का मामला है। जिसपर ना तो कानून का जोर चलता  है और ना ही समाज की नैतिकता का है। लेकिन समाज की नैतिकता को ठेंगा दिखा कर प्यार करने वालों को समाज की प्रताड़ना को भी सहना पड़ता है।

क्या गे, लैस्बियन, ट्रांसजैंडर को समान अधिकार दिए जाएंगे? अभी तो भारत में इसी पर बहस चल रही है। मामला सर्वोच्च अदालत में है। वैसे सब से पहले लोग समलैंगिकता को ले कर अपना दृष्टिकोण बदल लें, सोच का दायरा बढ़ा लें, यही काफी होगा। इन्हें लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां भी फैली है। अभी भी हमारे समाज में इन्हें मानसिक रोगी समझा जाता है। लोगों में ये भी गलतफहमी है कि समलैंगिकों में एड्स की आशंका सब से अधिक रहती है,

भारतीय संस्कृति में समलैंगिता के उल्लेख काफी मिलते हैं। वात्सायन रचित ग्रंथ कामसूत्र में तो इस विषय पर खुलकर चर्चा की गई है। भारतीय समाज में समलैंगिकता का वजूद किस कदर रहा है।  इस बात का अंदाजा खजुराहो के शिल्प से भी लगाया जा सकता है। हालांकि इन सबके बावजूद भारतीय समाज में समलैंगिकता को कभी खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया गया। भारत में हमेशा से स्त्री-पुरुष संबंधों को ही स्वस्थ और स्वीकार्य माना गया है। यही कारण है कि मान्य ग्रंथ मनुस्मृति में समलैंगिकता को दंडनीय अपराध माना गया है।।

भारत की कुल जनसंख्या में समलैंगिकों की संख्या 0.2 फीसदी है। भारत में समलैंगिकों की संख्या लगभग 20 लाख है। निजी स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को लेकर वैश्विक परिदृश्य में तेजी से बदलाव और खुलापन आया है। ऐसे में भारत में भी इस कानून की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लगना लाजिमी है और समय के साथ साथ चलते हुए कानून में बदलाव की मांग की जा रही है।

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