सिर्फ मोदी, BJP की खिंचाई नहीं वर्तमान विरोधाभासों पर सोचने को मजबूर करते हैं संपत सरल के व्यंग्य

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प्राचीन ग्रीक दार्शनिक प्लेटो से जब उसके एक दोस्त ने एथेनियन समाज को समझने के लिए एक किताब मांगी, तो उन्होंने अपने दोस्त से अरस्तूफेन्स के नाटकों का उल्लेख किया। अरस्तूफेन्स एक व्यंग्यकार थे। कुछ मामलों में व्यंग्य को समाज को समझने के लिए सबसे प्रभावी स्रोत माना गया है। व्यंग्य किसी समाज के मूल्यों और शक्ति संरचनाओं के बारे में बताता है। कुछ लोगों ने तो व्यंग्य को इतिहास या मानवविज्ञान से बेहतर माना है।

एक व्यंग्यकार समाज के ऐसे विषयों की ओर ध्यान आकर्षित करता है जिसपर कि किसी का ध्यान नहीं जाता। व्यंग्यकार के व्यंग्य में समाज की आलोचना तो होती है लेकिन वह सिर्फ आलोचना नहीं होता अपितु उसमें एक रचनात्मकता होती है। अपनी इस रचनात्मक आलोचना के माध्यम से ही वह एक आदर्श समाज के निर्माण में सहायक होता है। वह हंसी, हंसी में सत्ता की आलोचना करता है और कमियों को समाज के आगे रखता है।

व्यंग्य जनमत के रूप में कार्य करता है और सत्ता को चुनौती देता है। व्यंग्य का काम समाज में उपस्थित विरोधाभासों को उजागर करना है। व्यंग्य समाज को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है। किसी समाज में व्यंग्य उस समाज की सहिष्णुता या असहिष्णुता को दर्शाता है। साथ ही यह बताता है कि नागरिक कितने स्वतंत्र हैं।

व्यंग्य की बात हो रही है तो हमारे समय के एक चर्चित व्यंग्यकार हैं संपत सरल। संपत सरल जी एक किताब है ‘निठल्ले बहुत बिजी हैं’। जिसे कि राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस पुस्तक में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर जमकर कटाक्ष किया है। संपत सरल के व्यंग्य आज के समय की कई विडंबनाओं को हमारे आगे रखते हैं। जो लोग व्यंग्य पढ़ने में, सुनने में, देखने में रुचि रखते हैं; वे जानते हैं कि व्यंग्य का काम महज हंसाना नहीं होता है। अगर व्यंग्य बस हंसने पर मजबूर कर रहा है तो वह असरदार नहीं है लेकिन व्यंग्य वह है जो आपको पहले गुदगुदाए लेकिन बाद में सोचने पर मजबूर कर दे। आप इस किताब के व्यंग्य पढ़ेंगे तो काफी देर तक मौजूदा परिस्थितियों पर सोचने को मजबूर होंगे।

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