केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद से भाजपा शासित राज्यों में गौरक्षा के नाम पर हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं। गौरक्षकों के हिंसा के अधिकांश शिकार मुस्लिम एवं दलित वर्ग से संबंधित लोग रहे हैं। विगत 1 अप्रैल को राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ ग्राम में कथित गौरक्षकों ने  हरियाणा के एक डेयरी व्यवसायी पहलूखान द्वारा एक गाय को खरीद कर परिवहन करते समय पीट-पीट कर मार डाला। कहा जाता है कि पहलूखान एक भैंस खरीदने के इरादे से अलवर गया हुआ था किन्तु एक अच्छी दुधारू गाय सस्ते में मिलती देख वह भैंसे खरीदने का इरादा त्याग गाय को खरीद कर ले जा रहा था। पुलिस ने बहरोड़ निवासी तीन युवकों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। 20 अप्रैल को वायरल हुए एक वीडियो के अनुसार, महिला गौरक्षक दल की राष्ट्रीय अध्यक्षा साध्वी कमल दीदी ने पहलू खान की हत्या के आरोपी 19 वर्षीय विपिन यादव की तुलना शहीद भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद से करते हुए कहा कि ‘पूरा देश उसके साथ है, उसे चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है।’ साध्वी कमल दीदी से किसी ने नहीं पूछा कि एक लघु मुस्लिम व्यवसायी की हत्या करके जीवित विपिन यादव शहीद भगत सिंह की श्रेणी में कैसे आ गया?

2014 लोकसभा के चुनाव के समय जहां भाजपा-विरोधी दल नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध गुजरात के 2002 के साम्प्रदयिक दंगों एवं उनमें मुस्लिमों के नरसंहार का आरोप लगाते रहे वहीं भारतीय कारपोरेट एवं मोदी अर्थशास्त्र के समर्थकों का कहना था कि 2003 से 2013 के दस वर्षों में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास को प्रमुखता देते हुए आरएसएस के विहिप, बजरंग दल आदि सरीखे आनुशंगिक संगठनों की उत्पाती गतिविधियों को नियंत्रित रखा। किन्तु नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यदि समाचार माध्यमों की सुर्खियों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बजरंग दल व गौरक्षक दलों के उपद्रवों की संख्या में वृद्धि हुई है। जिसका मतलब यह हुआ कि सरकार इनके उत्पातों पर काबू पाने में विफल रही है। इस संबंध में यू.पी. के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा नवनियुक्त डीजीपी सुलखान सिंह का 22 अप्रैल को दिया गया बयान सराहनीय है कि गौरक्षा के नाम पर किसी को कानून से खिलवाड़ की इजाजत नहीं होगी। यह तो आगे आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा कि वे गौरक्षक दलों के बे-लगाम उत्पातियों  पर लगाम लगाने में कितना सफल हो पाते हैं?

भारत की हिन्दू सनातन धर्म संस्कृति में गाय को पूजनीय पशु माना जाता है तथा दिवाली के दूसरे दिन संध्या को गाय की पूजा करके गोवर्धन पूजा पर्व मनाया जाता है। गाय को लक्ष्मी का अवतार मानकर उसे गौधन कहा जाता है। अन्य दुधारू पशुओं की तुलना में गाय का पवित्र स्थान होने के बावजूद देखा जा रहा है कि वर्तमान में देशी गायों की तुलना में भैंसों की देखभाल अधिक की जाती है। उत्तर भारत सड़कों पर किसी भी समय गायों को उनके बछड़ों के साथ आवारा हालत में घूमते हुए या आराम से बैठे हुए देखने को मिल जाना आम बात है। लम्बी दूरी के मालवाहक चालकों  से किए गए एक सर्वेक्षण में वाहन चालकों ने बताया कि उत्तर भारत के अधिकांश सडक़ दुर्घटनाएं बेलगाम गायों को बचाने में घटित होती हैं। जहां गायों के मालिक अपनी दूध न देनेवाली सूखी देशी गायों के प्रति बेफिक्र होते हैं वहीं भैंसों को उनके मालिक सम्हाल कर रखते हैं।

एक मोटे अनुमान के अनुसार, भारत में लगभग एक करोड़ गायों का उनके मालिक नाममात्र का पोषण कर रहे हैं इसलिए ये गायें सड़कों पर आवारा घूमती नजर आती हैं। गायों की उचित देखभाल न हो पाने के लिए आर्थिक कारण ही जिम्मेदार हैं। निम्न आमदनी वर्ग के परिवार एवं असिंचित छोटी जोत वाले किसान गायों की देखभाल नहीं कर पाते हैं। भारत की 20 करोड़ गायों में से 69 प्रतिशत गायों के मालिक आर्थिक दृष्टि कमजोर आमदनी वाले परिवारों के हैं। ये परिवार दुधारू गाय की ही देखभाल पर ध्यान देते हैं। सूखी गायों एवं कम दूध देने वाली छोटी गायों की तुलना में भैंस कीमती मानी जाती है, इसलिए उसकी देखभाल ठीक ढंग से की जाती है। विदेशी नस्ल की होल्सटीन फ्रिसियन गाय तथा क्रासब्रीड गायों के मालिक तो भैंसों से भी अधिक उनकी देखभाल करते हैं। भारत में डेयरी व्यवसायी व गौशालाएं गिर, सायवाल, रेड सिंधी,  थारपारकर, मालवी, हरियाणा, काकरेज आदि अच्छी दूध देनेवाली नस्ल की गायों को पालते हैं, इसलिए इन गायों को भी रक्षा की जरूरत नही होती है।

      भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं अन्य हिन्दुवादी संगठन तथा हिन्दू महासभा, भारतीय जनसंघ तथा रामराज्य परिषद सरीखे राजनीतिक दल सदैव गौहत्या पर प्रतिबंध के लिए कानून बनाने की मांग करते रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उससे जुड़े सम्पन्न लोगों ने अनेक राज्यों में गौरक्षा हेतु गौरक्षण संभाएं, गौरक्षण केन्द्र, गौशालाएं तथा गौविज्ञान अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना करके उल्लेखनीय रचनात्मक कार्य किया। भारत के अनेक राज्यों में दर्जनों सम्पन्न व्यवसायी गौशालाएं संचालित कर रहे हैं जहां न केवल दुधारू गायों बल्कि निराश्रित व बूढ़ी गायों का पालन किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद विहिप व बजरंगदल ने गायों को आजाद कराने के लिए गौरक्षक दलों के गठन का कर आक्रमक रुख अपनाया। इन गौरक्षकों ने स्वयंभू कार्रवाइयां प्रारम्भ कर कानून व व्यवस्था की समस्याएं पैदा करना आरम्भ कीं। 

अब तो हिन्दीभाषी राज्यों में गौरक्षक दलों के उत्पात व गुंडागर्दी आम होती जा रही है, अलवर जिले में तीन गौरक्षकों द्वारा मुस्लिम व्यवसायी पहलू खान की हत्या इसका ज्वलंत उदाहरण है। साध्वी कमल दीदी का हत्या तथा हत्यारों के समर्थन में बयान बहुत अधिक आपत्तिजनक है। अलवर में मुस्लिम व्यवसायी की हत्या तथा साध्वी कमल दीदी के बयान पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मौन, केन्द्र सरकार के मूक समर्थन का संदेह पैदा करता है। गौरक्षकों के उत्पात को रोकने के लिए एक ही तरीका है कि केन्द्र सरकार नीति आयोग से विस्तृत गौरक्षा नीति बनाएं। केन्द्र राज्यवार सर्वेक्षण करवाकर गाय मालिकों की जानकारी एकत्र करे जो गायों को पालन पोषण करने में असमर्थ हैं। इस सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी के आधार पर केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को गौरक्षण शालाओं व गौपालन केन्द्रों को खोलने के लिए धन उपलब्ध करवाए। इन रचनात्मक कदमों से ही गौरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। गौरक्षकों के उत्पात तथा हिंसा से गौरक्षा संभव नही है।

डॉ. हनुमन्त यादव

Courtesy: http://www.enctimes.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here