झारखंड के रांची की रहने वाली दीपिका कुमारी दुनिया की नबर वन तीरंदाज हैं। बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली दीपिका ने महिलाओं की व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा के फाइनल राउंड में रूसी खिलाड़ी एलेना ओसिपोवा को 6-0 से हराकर तीसरा गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इससे पहले उन्होंने मिक्स्ड राउंड और महिला टीम रिकर्व स्पर्धा में भी गोल्ड मेडल हासिल किया। दीपिका ने मात्र पाँच घंटे में ये तीनों गोल्ड मेडल हासिल किए हैं।

दीपिका के पास 9 गोल्ड मेडल, 12 सिल्वर मेडल और 7 बॉन्ज मेडल है। 18 साल की उम्र में नंबर वन की पोजिशन हासिल करने वाली दीपिका के पास ओलंपिक मेडल की कमी है। अब उनकी नजर जापान में होने वाला टोक्यो ओलंपिक पर टिकी है। भारत को 9 गोल्ड मेडल दिलाने के बाद दीपिका से देशवासियों की उम्मीदें और बढ़ गई हैं।

दीपिका की यह उपलब्धि से क्रिकेट के मसीहा सचिन भी प्रभावित दिखे। सचिन ने ट्विटर पर लिखा कि पेरिस में दीपिका ने जिस तरह का खेल दिखाया है, उससे समझ आ गया है कि ओलंपिक खेलों के दौरान दुनिया को क्या देखने को मिलेगा। सचिन तेंदुलकर ने ट्विटर पर लिखा, ‘दीपिका का जबर्दस्त प्रदर्शन। आप इस सफलता और मान्यता की सही मायने में हकदार हैं। पेरिस में जारी तीरंदाजी वर्ल्ड कप में आपके प्रदर्शन ने दिखा दिया है कि ओलंपिक में दुनिया क्या देखेगी। आपकी उपलब्धियों पर गर्व है। टोक्यो ओलंपिक के लिए आपको शुभकामनाएं।’ 

बड़ी दिलचस्प बात है 27 वर्षीय दीपिका कुमारी भारत से ओलंपिक में हिस्सा लेनेवाली इकलौती महिला हैं। उससे भी खास बात यह कि दीपिका ऐसे परिवार से आती हैं जहां दो वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। दीपिका के पिता ऑटो चालक थे मां डी विभाग में रांची के एक अस्पताल में काम करती थी। खैर दीपिका के घर की हालत अब सुधर गई है।

दीपिका ने अपने हुनर के दम पर परिवार को आर्थिक रुप से मजबूत बनाया है साथ ही समाज में माता – पिता का सर गर्व से ऊंचा भी किया है लेकिन यह सब कुछ इतना आसान नहीं था। दीपिका कहती हैं तीरंदाजी तो एक शौक था जिसे मैं बांस के जरिए पूरी करती थी, मतबल उन्होंने पहली बार धनुष-बाण बांस वाला इस्तेमाल किया था। रांची के जंगलों में वे खूब खेला करती थी। लेकिन उन्हें क्या पता था यह शौक एक दिन उन्हें उस मुकाम तक लेकर जाएगा जहां जाना हर इंसान का सपना होता है।

दीपिका अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहती हैं, मैने तीरंदाजी को नहीं चुना, तीरंदाजी ने मुझे चुना है। मैं जब अपने नानी के यहां गई थी तो मेरी ममेरी बहन ने बताया कि उनके यहां अर्जुन आर्चरी एकेडमी है। वहां पर सब कुछ मुफ्त में मिलता है। मैने सोचा की चलो कम से कम परिवार में एक का बोझ कम होगा और दो वक्त का खाना तो मिलता ही रहेगा। इस बात का जिक्र मैने पिता जी से किया कि मुझे एकेडमी में शामिल होना है। लेकिन पिता जी ने समाज के दबाव में आकर मुझे वहां जाने से मना कर दिया। लेकिन मुझे विश्वास था कि मैं वहां जरुर जाउंगी।

बड़ी मिन्नतों के बाद पिताजी मान गए उन्होंने मुझे वहां जाने दिया..यही वह दिन था जब सब कुछ बदलने वाला था। दीपिका एकेडमी पहुंच तो गई लेकिन वहां उन्हें यह कहकर बाहर निकाल दिया गया कि तुम बहुत दुबली पतली हो..दीपिका ने एकेडमी से तीन महीने का समय मांगा। तीन महीने बाद जब मैं पहुंची तो मुझे एकेडमी में शामिल कर लिया गया फिर क्या सीखती गई और आगे का रास्ता तय करती गई लेकिन इस सफर को आसान बनाने का श्रेय मेरे कोच धर्मेंद्र तिवारी को जाता है। सर से मेरी मुलाकात जूनियर वर्ल्ड चेंपियनशिप के ट्रायल के दौरान हुई थी। उन्होंने मुझे सेलेक्ट किया और खरसावां से टाटा आर्चरी एकेडमी लेकर आए। यह जगह स्वर्ग थी। यहां आने के बाद दीपिका कुमारी आज दीपिका कुमारी बनी हैं।

दीपिका भावुक होते हुए कहती हैं वो भी एक वक्त था जब मां 500 रुपये महीना कमाती थी और पिताजी छोटी सी दुकान संभालते थे। दो वक्त का खाना बड़ी मुश्किल से मिलता था। लेकिन आज सब कुछ बदल गया है। मुझे याद है जब मैं अर्जुन आर्चरी एकेडमी में सीख रही थी तो वहां पर शौचालय नहीं था लेकिन अब जिंदगी में रौशनी आगई है।

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