Mulayam Singh Yadav Death: कहते हैं राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।ये एक ऐसा क्षेत्र है जहां कब और कौन आगे हो, पता नहीं लगता।कुछ ऐसे ही अनुभव समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के साथ भी हुए।लेकिन इन उतार-चढ़ावों के बीच पहलवानी के पेशे से ताल्लुक रखने वाले मुलायम ने मौका देखकर अपने विरोधियों को न केवल चित किया, बल्कि सत्ता प्राप्त करने में भी सफल रहे।फिर चाहे श्रीराम मंदिर की लहर हो या बसपा सुप्रीमो मायावती का अचानक खेमा बदलना, हर चाल को मुलायम ने बड़े ही तरीके से करारी मात दी।
साल था 1990 श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर देश की सियासत अचानक गरमाई हुई थी। उस दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के बड़े कदम से बाबरी मस्जिद तो बच गई, लेकिन भारतीय राजनीति की दशा और दिशा हमेशा के लिए बदल गई। बीजेपी को यहीं से राजनीतिक संजीवनी मिल गई। मुलायम सिंह ने अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाई। यहीं से बीजेपी मुलायम सिंह यादव की छवि हिंदू विरोधी बनाने में सफल रही।
Mulayam Singh Yadav Death: श्रीराम मंदिर आंदोलन की लहर
Mulayam Singh Yadav Death: 90 के शुरुआती दशक में अयोध्या आंदोलन पूरे चरम पर था। उत्तर प्रदेश की सत्ता की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में थी। इस दौरान मुलायम ने बयान दिया था कि उनके सीएम रहते हुए बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा पर भी नहीं मार सकता। अक्टूबर 1990 में जब हिंदू साधु-संत कारसेवा के लिए अयोध्या कूच कर रहे थे।इस दौरान अचानक भीड़ बेकाबू हो गई। कारसेवक पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ते चले जा रहे थे।
अचानक मुलायम सिंह यादव ने सख्त फैसला लेते हुए प्रशासन को गोली चलाने का आदेश दिया। अचानक चली गोलियों में 5 कार सेवकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
30 अक्टूबर को हुई इस दर्दनाक घटना से कार सेवक गुस्से से भरे थे। 2 नवंबर 1990 को एकबार फिर बड़ी तादाद में कार सेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, पुलिस को एक बार फिर गोली चलानी पड़ी, जिसमें करीब 12 कार सेवकों की मौत हो गई।
इसका परिणाम जल्द ही सामने आया। वर्ष 1991 में लोकसभा चुनाव के नतीजे मुलायम के लिए बेहद खराब रहे।प्रदेश में बीजेपी 85 से बढ़कर 120 सीट पर पहुंच गई। हालात 1991 के आते ही और भी खराब हो गए।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हुआ तो मुलायम सिंह बुरी तरह हार गए। बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। साल 1992 में कारसेवक एक बार फिर से अयोध्या में जुटने लगे।आखिरकार 6 दिसंबर 1992 को वही प्रशासन जिसने मुलायम के दौर में कार सेवकों के साथ सख्ती बरती थी।मूकदर्शक बन गया और कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी।
Mulayam Singh Yadav Death: 1993 में बसपा ने पहला राजनीतिक गठजोड़ सपा के साथ किया
गौरतलब है कि साल 1993 में बसपा ने पहला राजनीतिक गठजोड़ सपा के साथ किया था। उन दिनों मंदिर आंदोलन चरम पर था और भाजपा को रोकने के लिए दोनों साथ आए थे। तब ये नारा दिया गया था कि “मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गये जय श्री राम.” लेकिन, ये गठबंधन 1995 में टूट गया। उसी साल लखनऊ का बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड हुआ था। सालों तक दोनों पार्टियों के बीच लंबी खाई रही लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बसपा का फिर से गठबंधन हुआ।वर्ष 1995 में कांशीराम और मुलायम सिंह एक हुए और 2019 में मायावती और अखिलेश यादव।लेकिन ये साथ भी जल्दी ही छूट गया।
Mulayam Singh Yadav Death: बसपा से मिला झटका
यूपी की राजनीति में बनते-टूटते गठबंधन की प्रतीक बनीं मायावती ने भी अचानक खेमा बदलकर मुलायम को झटका दिया। मायावती भाजपा से 3 बार, सपा से 2 बार और यहां तक की कांग्रेस से भी एक बार गठबंधन कर चुकी हैं। बसपा ने भाजपा के साथ वर्ष 1995, 1997 और 2002 में गठबंधन किया था। साल 1995 में भाजपा के साथ गठबंधन करके ही पहली बार वे सूबे की मुख्यमंत्री बनी थीं। भाजपा ने उन्हें बाहर से समर्थन देकर सरकार बनवाई थी। हालांकि सरकार ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पायी और साल 1996 में चुनाव हो गए।विधानसभा त्रिशंकु हो गई।
साल 1997 में दूसरी बार भाजपा के साथ गठबंधन करके मायावती सीएम बनीं। दोनों तलों में ये तय हुआ कि मायावती और कल्याण सिंह 6-6 महीने सीएम पद पर रहेंगे।. मायावती 6 महीने सीएम रहीं लेकिन, कल्याण सिंह के सीएम बनने के तुरंत बाद उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया। आखिरकार 5 साल बाद साल 2002 में फिर से मायावती ने भाजपा से गठबंधन किया। तब भाजपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई। मायावती तीसरी बार भाजपा से गठबंधन करके सीएम बनीं। 2007 में वे चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं। इस बार बसपा को पूर्ण बहुमत मिला और वे पहली बार अपने दम पर सीएम बनीं और पहली बार उन्होंने पूरे 5 साल सरकार चलाई।
Mulayam Singh Yadav Death: 2003 में यूपी की सत्ता पर सपा काबिज
वो साल था 2003 उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार फिर सत्ता पर काबिज हुई।मुलायम सिंह यादव बतौर मुख्यमंत्री चुने गए।राजनीतिक दांवपेंच चलाकर बसपा के 40 विधायक तोड़कर नेताजी को सत्ता की चाबी सौंपी गई।इसमें अहम भूमिका इनके भाई शिवपाल यादव ने निभाई।जिन्होंने बसपा विधायकों के साथ गठजोड़ किया।मुलायम भी पुराने जख्म कम करना चाहते थे, जो कभी उन्हें बसपा से मिले थे।
संबंधित खबरें