इजराइल-फिलिस्तीन जंग के बीच पुतिन को आई लेनिनग्राद की याद,यहां पढ़ें इस ‘नरसंहार’ के बारे में…

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Israel vs Palestine War: गाजा पर इजरायल की बमबारी लगातार जारी है। इसराइली सेना के मुताबिक,गाजा पर इन 5 दिनों में करीब 6000 बम गिराए जा चुके हैं। वहीं एक तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इजराइल को एक चेतावनी दे दी है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बीते शुक्रवार को इजरायल को गाजा को घेरने के खिलाफ चेतावनी दी। पुतिन के मुताबिक ये कुछ वैसा ही था जैसे नाजी जर्मनी ने लेनिनग्राद को घेरा था , जिसमें 15 लाख लोग मारे गए थे।

लेनिनग्राद का इतिहास

लेनिनग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग) की घेराबंदी इतिहास की सबसे घातक घेराबंदी में से एक थी, जिसमें 1941 और 1944 के बीच लगभग 1.5 मिलियन लोग मारे गए थे। जिनमें ज्यादातर आम नागरिक थे। 21वीं सदी के कुछ विद्वानों ने इस घेराबंदी का वर्णन करने के लिए “नरसंहार” शब्द का इस्तेमाल किया है,विशेष रूप से इसका जिक्र करते हुए विद्वानों ने कहा है कि भयंकर भुखमरी और शहर की नागरिक आबादी का जानबूझकर विनाश। ऐसे में हम लेनिनग्राद की घेराबंदी और पुतिन के इससे व्यक्तिगत संबंध पर एक नजर डालते हैं।

तब ऑपरेशन बारब्रोसा के साथ हिटलर ने 1941 की गर्मियों में सोवियत संघ के खिलाफ जाने का फैसला किया, जो पहले एक जर्मन सहयोगी था। अंततः एक विनाशकारी विफलता के साथ बारब्रोसा सोवियत संघ के लिए भी विनाशकारी था, जिसमें लाखों लोग मारे गये थे। लेनिनग्राद की घेराबंदी शायद उस कीमत का सबसे अधिक प्रतीक है जो सोवियत ने नाजियों को हराने के लिए चुकाई थी।

रूस की पूर्व राजधानी, लेनिनग्राद एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक रूप से मूल्यवान लक्ष्य था। सोवियत को इसके बारे में पता था और जर्मन सेना के शहर में पहुंचने से पहले प्रशासन ने कम से कम दस लाख नागरिकों को किलेबंदी करने और सुरक्षा की कई लाइनें बनाने के लिए जुटाया। 200,000 रेड आर्मी के सैनिकों और जर्मनी की अपनी जनशक्ति की कमी के साथ इन सुरक्षा ने शहर पर कब्ज़ा करना एक कठिन प्रस्ताव बना दिया। इसके बजाय जर्मनों ने घेराबंदी कर दी।

1942 में कितने लेनिनग्रादी मारे गये –

8 सितंबर 1941 से 27 जनवरी 1944 के बीच लगभग 872 दिनों में लेनिनग्राद लगातार जर्मन गोलाबारी, अकाल जैसी स्थितियों और रूसी उत्तर के प्रतिकूल मौसम के तहत घेराबंदी में था। अकेले 1942 में लगभग 650,000 लेनिनग्रादवासी मारे गये। भीषण सर्दियों में स्थिति विशेष रूप से गंभीर थी, जब तापमान शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस नीचे गिर जाता था। जनवरी और फरवरी 1942 में हर महीने लगभग 100,000 लेनिनग्रादर्स मर रहे थे। जब तक रेड आर्मी ने घेराबंदी तोड़ी, तब तक लेनिनग्राद में 1.5 मिलियन लोग मारे जा चुके थे। एरिया से बाहर निकालने की कोशिश के दौरान भी कम से कम पांच लाख से भी अधिक लोग मारे गए। अकेले सेंट पीटर्सबर्ग के पिस्कारियोवस्कॉय कब्रिस्तान में लगभग 470,000 नागरिकों और सैनिकों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया था।

लेनिनग्राद में त्रासदी का स्तर लगभग अकल्पनीय है। अमेरिकी सैन्य अकादमी द्वारा किए गए मूल्यांकन के अनुसार, घेराबंदी के दौरान रूसी हताहतों की संख्या पूरे युद्ध के दौरान संयुक्त अमेरिकी और ब्रिटिश हताहतों की संख्या से अधिक थी। यह पैमाना लेनिनग्राद में जो कुछ हुआ उसकी तुलना करना लगभग असंभव बना देता है। लेनिनग्राद में जर्मनों ने आपूर्ति में कटौती करके नागरिकों को निशाना बनाया। जिसे कुछ विद्वानों ने “व्यवस्थित भुखमरी” भी कहा है। इतिहासकार जोर्ग गैंज़ेनमुलर ने 2016 में डीडब्ल्यू को बताया था कि लेनिनग्राद की भुखमरी को यह गारंटी देने के लिए जरूरी था कि जर्मन सेना के लिए पर्याप्त आपूर्ति थी।

जर्मन सैन्य सिद्धांत के अनुसार, सैनिकों को कब्जे वाले क्षेत्रों से भोजन मिलना चाहिए था। इसका मतलब यह था कि बड़े शहरों को आपूर्ति करने पर विचार नहीं किया जा रहा था।लेनिनग्राद में स्थिति इतनी गंभीर थी कि लोगों ने नरभक्षण (एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को मांस खाता) का भी सहारा लिया, आधिकारिक तौर पर दो हजार मामले रिकॉर्ड में थे।

व्लादिमीर पुतिन का पर्सनल कनेक्शन

पुतिन द्वारा लेनिनग्राद का जिक्र करने का एक कारण इससे उनका अपना व्यक्तिगत संबंध है। जबकि उनका जन्म घेराबंदी हटने के छह साल बाद हुआ था, पुतिन ने लेनिनग्राद की घेराबंदी में अपने भाई को खो दिया था। बकौल पुतिन, ‘मेरे भाई को शायद यहीं दफनाया गया।’ पुतिन ने पिस्कारियोवस्कॉय कब्रिस्तान में वार्षिक पुष्पांजलि समारोह के दौरान कहा, “मेरे भाई, जिसे मैंने कभी नहीं देखा और न ही जानता था, उसे यहीं दफनाया गया था,मुझे यह भी नहीं पता कि वास्तव में कहां।”

रूसी राष्ट्रपति पुतिन के भाई विक्टर पुतिन केवल दो वर्ष के रहे होंगे, जब 1942 में संभवतः ठंड और भुखमरी के कारण उनका निधन हो गया। पुतिन ने अपनी किताब फर्स्ट पर्सन (2000) में भी बताया कि कैसे उनकी मां भूख से अधमरी थी और आगे उन्होने लिखा कि ,”वह होश खो बैठी… और उन्हें भी सभी लाशों के साथ फेंक दिया गया।”

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