Pak इस्लामी गुट Taliban को मान्यता देने के लिए सरकार पर बना रहा है दबाव, जानें पाक सरकार के समक्ष क्या है मजबूरियां

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Taliban का छलावा
Taliban का छलावा

Pakistan में शक्तिशाली इस्लामी गुट अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं। इस्लामिक राजनीतिक दल जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI) के प्रमुख फजलुर रहमान (Fazlur Rehman) ने हाल ही में मांग की थी कि इस्लामाबाद (Islamabad) अफगानिस्तान (Afganistán) में तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता दे।

रहमान पाकिस्तान के प्रभावशाली मौलवियों में से एक हैं और विपक्षी दलों के सबसे बड़े गठबंधन, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (Pakistan Democratic Movement) के प्रमुख भी हैं। पाकिस्तान में उनके बड़े पैमाने पर अनुयायी हैं और देश के धार्मिक और राजनीतिक हलकों में उनका काफी प्रभाव है। 36,000 पाकिस्तानी इस्लामी धार्मिक मदरसों में से 18, 000 से अधिक सख्त देवबंदी विचारधारा से संबंधित हैं, जो इस्लामी कानून के पालन पर जोर देता है।

अफगान तालिबान और रहमान दोनों देवबंदी विचारधारा (Deobandi ideology) को मानते हैं और तालिबान अधिकारियों और सैनिकों ने समान रूप से इन मदरसों में अध्ययन किया है। हालांकि तालिबान अफगानिस्तान में अपने इस्लामिक अमीरात की अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए दुनिया भर की सरकारों को आकर्षित करने की कोशिश में लगा है। कोई भी देश आधिकारिक तौर पर उनके शासन को मान्यता नहीं देता है।

तालिबान नेतृत्व के कई सदस्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी सूची में शामिल हैं। तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण करने के बाद सार्वजनिक फांसी, मीडिया पर हिंसक हमले, महिलाओं का दमन, लड़कियों के स्कूलों पर प्रतिबंध लगाने और जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करने की खबरें आई हैं। इस्लामिक समूहों का कहना है कि अफगान तालिबान ‘वैध’ है, पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों का कहना है कि वे अफगानिस्तान को चलाने में तालिबान के शरिया कानून का समर्थन करते हैं।

कई पाकिस्तानी तालिबान को मानते हैं नाजायज

रहमान के सहयोगी जलालउद्दीन का कहना है कि तालिबान पाकिस्तान के अनुकूल सरकार है और इस्लामाबाद से मान्यता दो मुस्लिम-बहुल देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करेगी। हालांकि पाकिस्तान में कई लोग ये भी मानते हैं कि तालिबान बल के माध्यम से सत्ता में आया है और उनकी सरकार को नाजायज मानते हैं।
दक्षिणपंथी धार्मिक समूहों का कहना है कि उदार पाकिस्तानियों ने अफगान तालिबान के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है।

इस्लामाबाद की लाल मस्जिद से संबद्ध एक इस्लामी संगठन, शहीद फाउंडेशन के हाफिज इहतेशम ने दावा किया कि 2001 के यूएस-नाटो आक्रमण ने तालिबान को अफगानिस्तान के वैध शासकों के रूप में अपदस्थ कर दिया और अब उनका शासन बहाल कर दिया गया है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, “हमें लगता है कि पाकिस्तान एक संप्रभु और स्वतंत्र देश है और उसे पश्चिमी दबाव की अनदेखी करनी चाहिए और इस सरकार को मान्यता देनी चाहिए।” इहतेशाम ने कहा कि उनका संगठन तालिबान को मान्यता देने के अनुरोध के साथ सरकार से संपर्क करने पर विचार कर रहा है।

तालिबान को मान्यता देने के लिए संसद में करेंगे मांग

इस्लामिक राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी के नेता मौलाना अब्दुल अकबर चित्राली का कहना है कि उनकी पार्टी के प्रमुख मांग कर रहे हैं कि इस्लामाबाद अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता दे। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, “हम संसद में भी यह मांग करेंगे।” उन्होंने कहा कि पार्टी इस उद्देश्य के लिए लामबंदी भी शुरू कर रही है। बता दें कि 1996 में जब तालिबान ने पहली बार अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, पाकिस्तान उनकी सरकार को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश था। तालिबान अमानवीय तरीके अपनाया और महिलाओं पर गंभीर प्रतिबंध लगाए। संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने भी तालिबान की पहली अफगान सरकार को मान्यता दी।

पाकिस्तान तालिबान को मान्यता देने के लिए पश्चिम को नहीं करेगा नाराज़

जानकारों का कहना है कि इस बार पाकिस्तान इसे मान्यता देकर पश्चिम को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकता। इस्लामाबाद एक लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से निपट रहा है, मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संस्थानों पर निर्भर है और 100 बिलियन से अधिक कर्ज में है। वाशिंगटन के एक थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण और मध्य एशिया के निदेशक हुसैन हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान यह देखेगा कि निर्णय लेने से पहले अन्य देश कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद को अलग-थलग कर दिया जाएगा, अगर अगर वह तालिबान का मान्यता देने में जल्दबाजी करता है, जबकि बाकी दुनिया उनके शासन की निंदा करती है।

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