ब्रिक्स सम्मेलन के तीसरे दिन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बहुप्रतीक्षित मुलाकात की। यह मुलाकात बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि डोकलाम के तनाव के बाद दोनों राष्ट्र प्रमुख पहली बार मिल रहें थे। 1 घंटे से अधिक की इस द्विपक्षीय वार्ता में दोनों नेताओं के बीच इस बात पर सहमति बनी कि आगे से डोकलाम जैसी स्थिति पैदा ना हो।
विदेश सचिव एस. जयशंकर ने इस मुलाकात के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि यह वार्ता बहुत रचनात्मक थी और दोनों के बीच विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाने पर सहमति बनी। दोनों देशों ने जोर दिया कि आपसी मतभेदों को विवाद नहीं बनने दिया जाएगा ताकि बॉर्डर पर शांति बनी रहे। दोनों देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा पर आपसी सहयोग की भी सहमति बनी।
एस जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के पास प्रगतिशील दृष्टिकोण है और इसलिए दोनों देशों ने अतीत के बारे में कोई ज्यादा बात नहीं की। जयशंकर ने दो टूक कहा कि यह पिछली बातें करने वाली बैठक नहीं थी।
आतंकवाद पर नहीं हुई कोई बात
पत्रकारों द्वारा पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के बारे में पूछने पर एस जयशंकर ने बताया कि वैश्विक आतंकवाद पर ब्रिक्स सम्मेलन में प्रमुख रूप से चर्चा हुई है, लेकिन आज दोनों नेताओं के बीच पाकिस्तान और आतंकवाद को लेकर कोई वार्ता नहीं हुई। दोनों नेता ब्रिक्स को लेकर यहां थे और ब्रिक्स के मुद्दों पर ही बातचीत हुई। दोनों देशों ने ब्रिक्स को और प्रासंगिक बनाने की बात कही।
पीएम मोदी ने जिनपिंग को सफल ब्रिक्स सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई दी। इस अवसर पर चीनी राष्ट्रपति ने ब्रिक्स के लिए पीएम मोदी के दृष्टिकोण की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच स्वस्थ्य और स्थिर रिश्ते होना दोनों देशों के लोगों के लिए जरूरी हैं। हम विश्व के 2 सबसे बड़े और उभरते देश हैं। जिनपिंग ने कहा कि चीन भारत के साथ मिलकर पंचशील के सिद्धांत के तहत काम करने के लिए तैयार है।
आखिर क्या है पंचशील सिद्धांत
पंचशील समझौता 63 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के पहले प्रीमियर (प्रधानमंत्री) चाऊ एन लाई के बीच हुआ था। इसके पांच बिंदु थे –
- एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान
- परस्पर अनाक्रमण
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना
- समान और परस्पर लाभकारी संबंध
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व