Chitragupt Puja आज, जानें पौराणिक कथा और पूजा विधि

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Chitragupt Puja
Chitragupt Puja

चित्रगुप्त पूजा (Chitragupt Puja) आज है। दावात पूजा या चित्रगुप्त पूजा यम द्वितीया को की जाती है। कायस्थ जाति के लोग जिनकी आजीविका कलम से है वे इसे विशेष रूप से करते हैं। दावात पूजा के दिन धर्मराज के दरबार में प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखने वाले भगवान श्री चित्रगुप्त की विधि-विधान से पूजा की जाती है। आज ही बहीखातों की भी पूजा की जाती है। बिना कलम की पूजा किए हुए चित्रगुप्त वशंज (कायस्थ )पानी नहीं पीते हैं।

यह है कहानी

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चित्रगुप्त पूजा


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रलय के तुरंत बाद परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि रचना का कार्य प्रारम्भ किया, और मनुष्य सहित अन्य जीव जन्तुओं का उदय हुआ। कर्मफल की व्यवस्था संभाली धर्मराज ने शुभकर्मों के फलस्वरूप पुण्य और अशुभ कर्मों के परिणाम में पाप का भागी होने की व्यवस्था दी गई। धर्मराज यह लेखा-जोखा रखने में पूर्ण सक्षम थे। सृष्टि व्यवस्था सुचारु चलती रही। धीरे -धीरे जनसंख्या बढ़ती, वंशावलियों का वस्तिार हुआ, मानव शरीरों की संख्या गणना कठिन प्रतीत हुई, पाप-पुण्य का लेखा- जोखा रखना मुश्किल हो गया।

अपने इस मुश्किल का हल मांगने के लए धर्मराज परमपिता ब्रह्मा के पास पहुंचे। धर्मराज ने कहा प्रभु मुझे कर्म का लेखा जोखा करने के लिए कोई सहायक चाहिए।

पितामह ध्यानमगन हुए, तप प्रारम्भ हुआ, एक हजार वर्ष बीत गए, शरीर में स्पन्दन हुआ, शुद्ध चैतन्य ब्रह्म शरीर डोलायमान हुआ और प्रगट हुआ ब्रह्म शरीर से तेजोदीप्त, दव्यि, स्थूल रूप, वर्ण तीसी के फूल के समान श्यामल, कण्ठ शंख के समान सुडौल, कण्ठ रेखा कबूतर के गले की रेखा के समान चिकनी, नेत्र कमल की पंखुरी के समान आकर्षक, हाथ आजानु दीर्घ, शरीर-सौष्ठव पूर्ण पीताम्बर-धारी, विद्युत सम आभावान्, दाहिने हाथ में लेखनी, बांए हाथ में दवात वे नवीन पुरुषाकृति पितामह के चरणों में नतमस्तक हुए।

पितामह ने अपने प्रतिरूप सदृश पुरुष के हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। पुरुष ने पितामह से विनम्र भाव से कहा ”पिता! कृपया मेरा नाम, वर्ण, जाति और जीविका का निर्धारण कीजिए। पितामह ने उत्तर दिया ह्ल तुम मेरे चित्त में गुप्त रूप से वास करते थे अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त हुआ।

पूजा विधि

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चित्रगुप्त महाराज

इस विशेष पर्व पर श्री चित्रगुप्त जी महाराज और धर्मराज के पूजन से पहले पूजा स्थल पर कलश स्थापना (वरुण पूजन कर) वरुण देवता का आवाहन करें। फिर गणेश अम्बिका का पूजन कर उनका आवाहन करें । तत्पश्चात ईशान कोण में वेदी बनाकर नवग्रह की स्थापना कर आवाहन करें । इसके पश्चात् दवात,कलम,पत्र-पूजन एवं तलवार की स्थापना कर नीचे दी गयी विधि से पूजन करें।

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