समलैंगिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। सभी पक्षों ने अपनी बहस पूरी कर ली है। कोर्ट ने कहा कि इसके बाद भी अगर किसी पक्ष को कुछ कहना है तो वो अपनी बात लिखत तौर पर शुक्रवार तक जमा कर सकते हैं।

समलैंगिक संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में कोर्ट ने इशारा किया है कि वह जल्द ही धारा 377 को रद्द कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ईसाई समुदाय की तरफ से समलैंगिकता का विरोध किया गया लेकिन कोर्ट ने कई सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक समलैंगिक समुदाय के अधिकारों का सम्मान होना चाहिए । जस्टिस आर एफ नरीमन ने टिप्पणी की कि अगर कोई कानून मूल अधिकारों के खिलाफ है, तो हम इसका इंतजार नहीं करेंगे कि बहुमत की सरकार इसे रद्द करे। हम जैसे ही आश्वस्त हो जायेंगे कि कानून मूल अधिकारों के खिलाफ है, हम ख़ुद फैसला लेंगे, सरकार पर नहीं छोड़ेंगे।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि अगर वेश्यावृति को कानूनन अनुमति दे दी जाती है तो ये काम कर रहे लोगों को स्वास्थ्य सेवा दी जा सकती है लेकिन अगर वेश्यावृति को दबा कर रखा जाए तो कई तरह की दिक्कतें सामने आती हैं। ईसाई समुदाय के वकील ने कहा कि समलैंगिकता अप्राकृतिक है, सेक्स का मकसद सिर्फ बच्चा पैदा करना होता है। इस पर जस्टिस रोहिंग्‍टन ने पूछा कि प्रकृति का नियम क्या है? क्या प्रकृति का नियम यही है कि सेक्स प्रजनन के लिए किया जाए? अगर इससे अलग सेक्स किया जाता है तो वो प्रकृति के नियम के खिलाफ है? वहीं चीफ जस्टिस ने कहा कि आप सेक्स और यौन प्राथमिकताओं को मत जोड़िए। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि 377 को रद्द करते हुए इस बात का ख्याल रखा जायेगा की समलैंगिकता के लिए दोनों व्यक्ति की रज़ामंदी हो। रज़ामंदी के बिना आप दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन करते हैं।

पिछली सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 377 से सहमति से समलैंगिक यौन रिश्तों के अपराध के दायरे से बाहर होते ही LGBTQ समुदाय के प्रति इसे लेकर सामाजिक कलंक और भेदभाव भी खत्म हो जाएगा।

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