दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली। पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है और सभी पक्षों को दो हफ्ते में लिखित दलीलें पेश करने को कहा है। बुधवार को सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा कि अनुच्छेद 77 के तहत दो तरह के नियम होते हैं, जो दिल्ली सरकार के पास मौजूद हैं।

पहला- कार्य का आवंटन करना और

दूसरा- अधिकार को निर्धारित करना।

दिल्ली सरकार ने कहा कि “मुख्यमंत्री के पास कार्यकारी शक्तियां निहित हैं और निर्णय लेने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास है”। साथ ही जो जनता का अधिकार है उसे खत्म नही किया जा सकता, यह संविधान का मूलभूत ढांचा है जिसके तहत जनता को अधिकार मिले हुए हैं।  दिल्ली सरकार ने यह भी कहा कि उपराज्यपाल केवल नाममात्र का प्रमुख है। राष्ट्रपति ही मंत्रिसमूह की नियुक्ति करता है। उपराज्यपाल के लिए मंत्रिसमूह की मदद और सुझाव जरूरी हैं, वह इनके सुझावों की अनदेखी नही कर सकता। निर्वाचित विधानसभा में ही शक्तियां निहित हैं।

दिल्ली पर केंद्र का पूरा अधिकार

लंबे समय से दिल्ली सरकार और दिल्ली के उप राज्यपाल के बीच कार्यकारी शक्तियां को लेकर तनातनी चल रही है और अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण भी शामिल हैं। पीठ के सामने पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि दिल्ली देश की राजधानी है और यह पूरे देश के लोगों की है, और केंद्र में देश की सरकार है इसलिए दिल्ली पर केंद्र का पूरा अधिकार है। केंद्र ने अपनी दलील में यह भी कहा था कि दिल्ली में जितनी भी सेवाएं हैं वह केंद्र के अधीन हैं और केंद्र के पास उसके ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार है और यह पूरी तरह से केंद्र के अधीन है। केंद्र की तरफ से यह साफ कहा गया था कि उप राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह को मनाने के लिए बाध्य नहीं हैं और अगर केंद्र सरकार दिल्ली में अपना प्रशासन चलाती है तो यह किसी भी तरह से अलोकतांत्रिक नहीं है।

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