सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मुकदमों के लिए बेंचों के आबंटन का अधिकार प्रधान न्यायाधीश का ही है और वही मास्टर ऑफ द रोस्टर है। इस बारे में दाखिल एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (6 जुलाई) को खारिज कर दिया। ये फैसला जस्टिस ए के सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने दिया।

इसी साल जनवरी में चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बेंचों के गठन को लेकर असंतोष जताया था। इन चार तत्कालीन वरिष्ठतम जजों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठाया था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश ही मास्टर ऑफ द रोस्टर हैं और मामलों को विभिन्न पीठों को आवंटित करने का अधिकार उनके ही पास है। जस्टिस ए के सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि वरिष्ठतम होने की वजह से उन्हें ये अधिकार है। प्रधान न्यायाधीश का मतलब कॉलेजियम नहीं है। संविधान CJI के मुद्दे पर मौन है लेकिन परपंरा और बाद के फैसलों में सभी द्वारा माना गया है कि CJI बराबर में सबसे पहले हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि कोई भी व्यवस्था अचूक नहीं होती है और न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार की हमेशा गुंजाइश रहेगी। कोर्ट ने कहा कि हम जवाबदेही के वक्त में रह रहे हैं।  तकनीक के वक्त में कोई भी फैसला आलोचना में बदल सकता है। दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन आधारभूत सिद्धांत नहीं बदलेंगे।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की गयी थी कि केस आवंटित करने का अधिकार सिर्फ प्रधान न्यायाधीश को नहीं होना चाहिए। याचिका में कहा गया था कि पांच वरिष्ठतम जजों को मिलकर मुकदमों की सुनवाई के लिए पीठों का आवंटन करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से केस में सहयोग मांगा था कि जजों की नियुक्ति का तरह क्या केसों के आवंटन के मामले में प्रधान न्यायाधीश का मतलब कॉलेजियम होना चाहिए? इसी साल अप्रैल में भी इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका खारिज की थी और कहा था कि प्रधान न्यायाधीश ‘समकक्षों में प्रथम’ हैं और मुकदमों के आवंटन और उनकी सुनवाई के लिए पीठ के गठन का संवैधानिक अधिकार उन्हीं को है।

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