गैंगस्‍टर्स अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ कार्रवाई, MP MLA Court ने सुनाई सजा, जानिए क्‍यों अलग है आम अदालतों से एमपी, एमएलए कोर्ट?

MP MLA Court: देश की सर्वोच्‍च अदालत ने साल 2017 में एक महत्‍वपूर्ण आदेश दिया था। जिसके तहत सांसदों और विधायकों के लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने के लिए देशभर में विशेष अदालतों की स्थापना की बात की गई।

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MP MLA Court kya hota hai?
MP MLA Court Gazipur

MP MLA Court:यूपी में गैंगस्‍टर्स के खिलाफ अभियान जारी है। इसी कड़ी में अब गैंगस्‍टर मुख्‍तार अंसारी का नाम भी जुड़ गया है। मालूम हो कि बीते शनिवार को ही गैंगस्‍टर एक्‍ट के तहत कोर्ट ने उसे 10 वर्ष की सजा और 5 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया है।ये पिछले 8 माह के दौरान चौथा मौका है जब गैंगस्‍टर मुख्‍तार अंसारी को सजा हुई है। बांदा जेल में बंद मुख्‍तार अंसारी के भाई और बसपा सांसद अफजाल अंसारी को भी कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई है।गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने उस पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

गौरतलब है कि कृष्णानंद राय केस में गैंगस्‍टर मुख्तार अंसारी की मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं। 2007 में मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर एक्ट में भी केस दर्ज हुआ था। 2005 में जब कृष्णानंद राय की हत्या हुई थी तब मुख्तार अंसारी मऊ विधानसभा सीट से विधायक था और MP-MLA कोर्ट में गैंगस्टर एक्ट में सुनवाई हुई।

MP-MLA कोर्ट में गैंगस्टर मुख्तार अंसारी की हिस्ट्री खुली और गैंगस्टर एक्ट के तहत मुख्तार के खिलाफ नंद किशोर रुंगटा और कृष्णानंद राय हत्याकांड के मामले में सुनवाई हुई।बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया और कोर्ट ने उसे 10 साल की सजा सुनाई।

MP MLA Court: देश की शीर्ष अदालत ने साल 2017 में एक महत्‍वपूर्ण आदेश दिया था। जिसके तहत सांसदों और विधायकों के लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने के लिए देशभर में विशेष अदालतों की स्थापना की बात की गई। इसके बाद 11 राज्यों में विशेष रूप से मौजूदा सांसदों और विधायकों के मुकदमों की सुनवाई के लिए 12 विशेष अदालतें स्थापित की गईं। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक केरल और बिहार में मौजूद विशेष अदालतों को बंद कर दिया गया।

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कृष्णानंद राय केस में गैंगस्‍टर मुख्तार अंसारी की मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं।

MP MLA Court: आखिर क्‍यों है MP, MLA Court की आवश्‍यकता?

MP MLA Court:आखिर एक ही सवाल उठता है कि देश को एमपी, एमएलए कोर्ट की आवश्यकता क्यों है? देश की विधायिका सरकार को दूसरा अहम अंग होती है। हमारे देश में कानून बनाने का काम विधायक और सांसद ही करते हैं।ऐसे में अगर वे खुद ही नियम और कानूनों का उल्लंघन करेंगे तो लोकतांत्रिक प्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा होगा।
यही वजह है कि देश में सुशासन, राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण रोकने और न्यायपालिका/लोकतंत्र में जनता का विश्वास सुदृढ़ करने, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव और विधि का शासन बनाए रखने के लिए इस प्रकार की अदालतों की जरूरत होती है।

वर्तमान में लोकसभा सदस्यों में से लगभग आधों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कि 2014 (16th LokSabha) की तुलना में 26% अधिक है। बात अगर राजनीति में अपराधीकरण के कारणों की करें तो चुनाव में धनबल और बाहुबल का बढ़ता इस्‍तेताल, कानूनों और SC के निर्णयों के प्रवर्तन का अभाव, जनता में जागरूकता की कमी और राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का अभाव इसकी बड़ी वजहों में शामिल हैं।

राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए तमाम वैधानिक उपाय भी किए गए हैं जैसे कि ‘जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951’ की धारा 8, कुछ अपराधों के लिए दोषसिद्धि पर अयोग्यता तय करती है। इसके अनुसार दो साल से अधिक की जेल की सजा वाला व्यक्ति जेल की अवधि समाप्त होने के बाद, छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता। हालांकि, ये कानून ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के मद्देनजर, धारा 33-ए को शामिल करके लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया गया था। इसके तहत, किसी भी उम्मीदवार के लिए यह जानकारी देनी जरूरी है कि क्या उस पर 2 साल के कारावास या किसी भी अपराध का आरोप है। लंबित मामले जिनमें आरोप तय किए गए हैं और क्या उन्हें एक वर्ष या उससे अधिक के लिए दोषी ठहराया गया है।

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कृष्णानंद राय केस में गैंगस्‍टर मुख्तार अंसारी की मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं।

MP MLA Court: राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए कई उपाय सुझाए

MP MLA Court:कानून विशेषज्ञों ने राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए कई उपाय सुझाए हैं। जैसे कि चुनावी सुधारों पर विभिन्न समितियों (दिनेश गोस्वामी, इंद्रजीत समिति) ने चुनावों के लिए राज्य के वित्त पोषण (STATE FUNDING) की सिफारिश की है। यह चुनावों में काले धन के उपयोग को काफी हद तक रोकेगा। राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में मदद मिलेगी। भारत के चुनाव आयोग को और भी ज्यादा सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। चुनावों के दौरान धन, उपहार और अन्य प्रलोभनों के दुरुपयोग के बारे में भी मतदाताओं को सतर्क और जागरूक किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात कि पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

MP MLA Court:10 एमपी, एमएलए कोर्ट कार्यरत

MP MLA Court: वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 02 और उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु 01-01 विशेष न्यायालय कार्यरत हैं।कुल मिलाकर 10 विशेष न्यायालय कार्य कर रहे हैं। हाल में ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर अपराध को दो श्रेणियों में बांट दिया गया है।

पहले वे मुकदमे जो सत्र न्यायालय द्वारा परीक्षण में हैं और जिनकी सुनवाई सत्र अदालत में होनी है। दूसरा, छोटे अपराध से संबंधित मामले मजिस्ट्रेट न्यायालय में सुने जाने हैं। सितंबर 2020 में, SC द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) ने अपनी रिपोर्टों में बताया कि MP/MLA के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन के बावजूद, 4,442 आपराधिक मामलों में 2,556 मौजूदा सांसद और विधायक शामिल हैं।

MP MLA Court: माननीयों के खिलाफ केस अब राज्‍य सरकारें मनमाने तरीके से वापस नहीं ले सकतीं

MP MLA Court: पिछले वर्ष ही जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के त्‍वरित निपटान से जुड़ी याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। जिसके तहत राज्य सरकारें अब मनमाने तरीके से केस वापस नहीं ले सकेगीं।शीर्ष अदालत ने यह आदेश दिया कि कोई भी राज्य सरकार वर्तमान या पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक केस बिना हाईकोर्ट की मंजूरी के वापस नहीं ले सकती।

MP MLA Court: कोर्ट ने 2016 से लंबित इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों से तमाम लंबित मुकदमों का विवरण मांगा था। केंद्र सरकार से कहा था कि वह हर राज्य में विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट बनाने के लिए फंड जारी करे।इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में मामले की सुनवाई हुई थी।उस दौरान पूर्व चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई थी1कोर्ट ने सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाए थे।

इस पूरे मामले में कोर्ट की तरफ से एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कई जानकारियां कोर्ट को दी थीं।उन्‍होंने बताया था कि देशभर में वर्तमान और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ 4,800 से अधिक केस लंबित हैं।

MP MLA Court: कोर्ट को बताया था कि यूपी सरकार मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम, सुरेश राणा समेत कुछ अन्य के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की कवायद कर रही है। जजों ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत राज्यों को मिली शक्ति के दुरुपयोग पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि कोई भी राज्य सरकार जनप्रतिनिधियों के मुकदमा वापस लेने से पहले हाई कोर्ट की अनुमति ले।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार से भी फिलहाल जनप्रतिनिधियों के मुकदमे सुन रहे निचली अदालत के जजों की लिस्ट सौंपने को कहा था। कोर्ट ने कहा है कि फिलहाल इन जजों को उनके पद पर बने रहने दिया जाए।हालांकि यह आदेश सेवानिवृत्‍त होने जा रहे जजों पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर किसी जज को दूसरे पद पर भेजना बहुत जरूरी हो तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार पहले उसकी अनुमति लें।

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