राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (6 जुलाई) से फिर सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान दोनों तरफ से दलीलें दी गई लेकिन मुस्लिम पक्षकारों ने अपनी पुरानी दलील को दोहराते हुए मस्जिद में नमाज को जरूरी और अभिन्न अंग बताया। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि इस तरह से मामले को लटकाया जा रहा है।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से एक बार फिर इस्माइल फारुखी मामले को संविधान पीठ में भेजने की मांग की गई। मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मस्जिदों को मजाक के लिए नहीं बनाया गया है। वहां नमाज अदा करने सैकड़ों लोग इकट्ठा होते हैं, क्या ये इस्लाम का एक अभिन्न हिस्सा नहीं हैं ?  इसलिए मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए। राजीव धवन की इस दलील पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हमें अभी केवल ये तय करना है कि इस पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं।

वकील राजीव धवन ने दलील दी कि मस्ज़िद को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा न मानने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। जिस तरह ईसाई रविवार को चर्च में प्रार्थना के लिए जमा होते हैं, वैसे ही मुस्लिम शुक्रवार को नमाज और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के लिए मस्ज़िद में जमा होते हैं।

सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने आपत्ति जताई कि 1994 में इस्माइल फारुखी के फैसले के बाद किसी ने इस फैसले की वैधानिकता पर सवाल नहीं उठाया। पिछले 8 साल से अयोध्या का मामला यहां सुप्रीम कोर्ट में लंबित है लेकिन फारुखी केस को नहीं उठाया गया। अब जब इस मामले में सभी कागजी करवाई पूरी हो गई है तो इस मामले को उठाया जा रहा है ये पूरे मामले को लटकाना है। मामले की सुनवाई अब 13 जुलाई को होगी।

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