राज्यसभा के नामांकन 5 जनवरी तक होने हैं।इस बात की काफी उम्मीदें थी कि आम आदमी  पार्टी में इसके लिए कुमार विश्वास का नाम पहले नम्बर पर होना चाहिए था, पर ऐसा हुआ नहीं। आम आदमी पार्टी ने संजय सिंह, नारायण दास गुप्ता और सुशील गुप्ता को राज्य सभा चुनावों में बतौर उम्मीदवार चुना है। 16 जनवरी को राज्य सभा के चुनाव होने हैं।

आम आदमी पार्टी द्वारा राज्य सभा का टिकट नहीं मिलने पर पार्टी नेता कुमार विश्वास की काफी आहत नजर आए। उन्होंने अपने खास अंदाज में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर उन्होंने जमकर कटाक्ष किया। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़ साल से अरविंद केजरीवाल ने जो भी फैसले लिए चाहे वह टिकट वितरण में गड़बड़ी हो, जेएनयू हो, पंजाब में अतिवादियों के प्रति नरम रवैया हो या कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, जहां-जहां मैंने सच बोला, मुझे आज उसका पुरस्कार दंडस्वरूप मिला है। कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, ”मैं 40 वर्ष से मनीष सिसोदिया के साथ, 12 वर्ष से अरविंद के साथ और 7 साल से कार्यकर्ताओं के लिए काम कर रहे सुशील गुप्ता को राज्य सभा भेजने पर मैं दिल्ली के मुख्यमंत्री को बधाई देता हूं, जिन्होंने शानदार चयन किया है।

अपनी बातों में विश्वास ने कहा कि 4 महीने पहले मुझसे अरविंद केजरीवाल ने बोला था कि आपको मारेंगे, लेकिन शहीद नहीं होने देंगे। आज मैं अपनी शहादत स्वीकार करता हूं। उन्होंने कहा कि युद्ध का एक नियम होता है कि शहीदों के शव के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाती और हमारे दल में अरविंद केजरीवाल की मर्जी के बिना कुछ होता नहीं है। उनसे असहमत रहकर वहां जिंदा रहना बहुत मुश्किल है। उन्होंने कहा कि मुझे अपनी शहादत मंजूर है और मैं पार्टी आलाकमान से गुजारिश करता हूं कि शव के साथ छेड़छाड़ न करें। यह युद्ध के नियमों के विपरीत है।

पिछले घटनाक्रमों पर नजर लें तो पता चलता है कि पिछले दो महीनों में पार्टी के अंदरूनी सूत्र तमाम बाहरी नामों का ज़िक्र करते थे, पर कुमार विश्वास का नाम सामने आने पर चुप्पी साध लेते थे। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और राम जेठमलानी जैसे नाम उछले। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस टीएस ठाकुर का नाम भी सामने आया। पर कुमार विश्वास के नाम का पूरे भरोसे से ज़िक्र नहीं किया गया। ऐसे में साफ है कि पार्टी राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी आवाज़ बुलंद करना और पहचान बनाना चाहती थी। दूसरे, ऐसा करके उसका इरादा पार्टी के भीतर के टकराव को भी टालने का था। लेकिन अब सब साफ है। ऐसे में देखना होगा कि क्या कुमार विश्वास पूरी तरह अलग-थलग पड़ेंगे?  उनकी अगली रणनीति क्या होगी?

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