बीते कुछ समय से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार देश के कुछ ऐसे लोगों को पद्म पुस्कार दे रही है जिस की लोग कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। गणतंत्र दिवस  पर जब भी पद्म पुस्कार देने के लिए लोगों की सूची बनाई जाती है तो लोग चौक जाते हैं। कला, विज्ञान, सामाजिक सरोकार, लोक सेवा सहित अन्य क्षोत्रों में काम करने वाले लोगों को पद्म पुरस्कार से नवाजा गया है। इस बार पद्म पुरस्कार पाने वालों की सूची अलग है क्योंकि वे लोगों को समाज सेवा के लिए प्रोत्साहित करते हैं। साथ इसमें समाज से कटे वर्ग यानी की डोम जाती को भी शामिल किया गया है।

डोमराजा परिवार

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काशी के डोमराजा चौधरी परिवार में सोमवार को एक सुनहरा अध्याय जुड़ गया। चौधरी खानदान के छठे डोमराजा स्व. जगदीश चौधरी पद्म अलंकरण पाने वालों की सूची में शामिल हुए हैं। उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। उनका निधन गत वर्ष 26 अगस्त को हुआ था। पहलवानी और शरीर शौष्ठव में खास दखल रखने वाले जगदीश चौधरी अपने परिवार में पहलवानी परंपरा की अंतिम कड़ी थे। पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक रहे जगदीश चौधरी तीन साल पहले डोमराजा बनाए गए थे। सोमवार रात जब यह खबर जगदीश चौधरी की मां सारंगा देवी को दी गई तो वह पहले समझ ही नहीं सकीं कि मरने के बाद उनके बेटे को सरकार ने क्या दिया है। पद्म अलंकरण की जानकारी मिलने पर वह भावुक होकर रो पड़ीं। उन्होंने कहा ‘हमार लाल होतन त केतना खुश होतन, उहै त हमार असली धन रहलन, ऊ रहतन त राष्ट्रपति से खुद लेहतन।’

डोमराजा का इतिहास: वर्तमान डोमराजा परिवार की शुरुआत करीब ढाई सौ साल पहले कालू डोम से मानी जाती है। मानमंदिर घाट स्थित शेर वाली कोठी में यह परिवार करीब दो सौ वर्षों से है। जगदीश चौधरी छठी पीढ़ी के तीसरे डोम राजा थे। 25 वर्ष पूर्व पिता के निधन के बाद उनके सबसे बड़े भाई रंजीत चौधरी और उनके निधन के बाद उनके मझले भाई कैलाश चौधरी डोमराजा बने थे। इस समय डोमराज की पदवी स्व. जगदीश चौधरी के 11 वर्षीय पुत्र हरि नारायण चौधरी के पास है।

डायन के खिलाफ लड़ने वाली छुटनी

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सात छऊ कलाकारों को पद्मश्री अवार्ड दिलाने वाले कलानगरी के रूप में विख्यात सरायकेला के नाम एक और पद्मश्री अवार्ड जुड़ गया। यह अवार्ड कोई कलाकार नहीं बल्कि अपने संघर्ष की बदौलत प्रताड़ित महिलाओं का सहारा बनी छुटनी महतो को मिला है।छुटनी महतो को डायन के नाम पर घर से निकाल दिए जाने के बाद वह चुप नहीं बैठी, बल्कि डायन के नाम पर प्रताड़ित लोगों का सहारा बनीं। आज वह झारखंड ही नहीं अन्य राज्यों के प्रताड़ित महिलाओं के लिए ताकत बन चुकी हैं। लगभग 63 वर्षीया छुटनी महतो सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड के भोलाडीह बीरबांस का रहने वाली हैं। छुटनी निरक्षर हैं परंतु हिन्दी, बांगला और ओड़िया पर उसकी समान पकड़ है।

पहली बार सुना पद्मश्री अवार्ड का नाम : छुटनी महतो को पद्मश्री अवार्ड मिलने की सूचना सबसे पहले हिंदुस्तान ने दी। उन्होंने बताया कि इससे पहले इस पुरस्कार के बारे में वह नहीं जानती थीं। वह अवार्ड मिलने की सूचना से खुश हैं। अब वह दोगुनी खुशी व उत्साह के साथ कार्य करेंगी और जीवनपर्यंत प्रताड़ित महिलाओं के खिलाफ आ‌वाज उठाएंगी। उन्होंने कहा कि मेराय यह पद्मश्री अवार्ड मेरे साथ काम करने वाली सभी महिलाओं के मेहनत का प्रतिफल है।

भागलपुर के डॉ. दिलीप कुमार सिंह

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भागलपुर के पीरपैंती निवासी डॉ. दिलीप कुमार सिंह को पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है। वे 95 वर्ष के हैं। 1980 में गरीबों के बीच मुफ्त पोलियो टीका वितरण के लिए इनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है। पीएमसीएच के अलावा उन्होंने लंदन से पढ़ाई की और अमेरिका के न्यूयार्क शहर में अपनी सेवा दी है। डॉ. दिलीप का जन्म 26 जून 1926 को बांका में हुआ था। वह एक जेनरल प्रैक्टिसनर और फैमिली फिजिशियन हैं। उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री 1952 में पटना मेडिकल कालेज से ली है। डीटीएमएच लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसीन इंगलैंड से की। उन्होंने न्यूयार्क के एमवी हॉस्पिटल में भी काम किया। वह इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और लेप्रोसी फाउंडेशन वर्धा के लाइफ मेंबर भी है।

1953 में उन्होंने पीरपैंती में प्रैक्टिस शुरू की। उस वक्त न बिजली थी न टेलीफोन की सुविधा और न ही पिच रोड। उस स्थिति में वह लोगों के गांव-गांव जाकर लालटेन की रोशनी में इलाज करते थे। उन्होंने अपना डिप्लोमा ट्रॉपिकल मेडिसीन एंड हाइजिन लिवरपूल से किया। उन्हें विदेश में रहकर प्रैक्टिस करने का अवसर भी था और सुविधाएं भी थी लेकिन वह अपने गांव में गरीब जनता की सेवा करना चाहते थे। इसलिए वह पीरपैंती वापस आ गए। इस बीच वह लगातार कांफ्रेंस और ट्रेनिंग प्रोग्राम में देश के अंदर और विदेश में भी हिस्सा लेते रहे। 1971 में वह प्रेसिडेंट ऑफ अमेरिकन एकेडिमी ऑफ जेनरल प्रैक्टिस द्वारा बुलाए गए। 1973 में वह वर्ल्ड मेडिकल एसेंबली के मेंबर डेलीगेट बनाये गए। 1993 में वह वर्ल्ड कॉफ्रेंस ऑफ इंटरनेशनल फेडरेशन में सिंगापुर बुलाए गए।

मिथिला चित्रकला

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मिथिला चित्रकला ने पिछले 45 साल में बिहार को सातवीं बार भारत का सबसे प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार दिलाया। देश-दुनिया में मशहूर इस चित्रकला के प्रशंसक दुनियाभर में हैं। मधुबनी-दरभंगा के घर आंगन से कागज, कपड़ा, सिल्क और अन्य माध्यमों में उतर चुकी मधुबनी पेंटिंग के दो हिद्धहस्त कलाकारों दुलारी देवी और शिवन पासवान ने 2021 के पद्मश्री अवार्ड के लिए आवेदन किया था। इनमें से दुलारी देवी ने फिर मिथिला चित्रकला का परचम लहरा दिया।  इसके साथ ही दुलारी देवी अब जगदम्बा देवी, सीता देवी, गंगा देवी, महासुंदरी देवी, बौआ देवी, गोदावरी दत्ता जैसी मिथिला चित्रकला की दिग्गज कलाकारों की सूची में शामिल हो गई हैं। दुनिया में मशहूर मिथिला चित्रकला भारतवर्ष की कला विधाओं में इस मायने में अगुआ बन गया है क्योंकि अकेले इस कला से 7 कलाकारों को भारत सरकार ने पद्मश्री दिया है। सबसे पहले इस कला की महान कलाकार स्वर्गीया जगदंबा देवी ने भारत सरकार का प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कार वर्ष 1975 में प्राप्त किया था। मजेदार पहलू यह भी है कि मिथिला चित्रकला के जिन सात कलाकारों को पद्मश्री मिला है, वे सभी महिलाएं हैं। 

कोरोना मरीजों को मौत के बाद शमशान पहुंचाने वाले जितेन्द्र सिंह शंटी

Jitender Singh

कोरोना के मरीजों की सेवा और उनकी मौत के बाद उन्हें शमशान घाट पहुंचाने वाले दिल्ली के समाज सेवक जितेन्द्र सिंह शंटी को देश के सर्वोच्च अवार्ड में शामिल पदमश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पदमश्री अवार्ड की घोषणा की गई। जिसमें जितेन्द्र सिंह शंटी का नाम शामिल था। इससे पहले उन्हें उनकी समाज सेवा के लिए लिम्का वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह दी गई थी। विवेक विहार के रहने वाले जितेन्द्र सिंह शंटी लंबे समय से समाज सेवा के काम में लगे हुए हैं। उन्होंने शहीद भगत सिंह सेवा दल का निर्माण किया और उसके जरिए लोगों को अस्पताल पहुंचाने, मृत लावारिस शवों और मृतकों के शवों को शमशान पहुंचाने और लावारिस शवों का क्रियाक्रम करने का काम करते हैं।

कोरोना में मरीजों की सेवा के दौरान न केवल वह बल्कि उनका पूरा परिवार कोरोना संक्रमित हो गया था। संक्रमण से उबरने के बाद वह और उनके परिजन दोबारा कोरोना मृतकों और मरीजों की सेवा में लग गए। इसके अलावा स्वच्छता अभियान, सामूहिक विवाह जैसे कई कल्याणकारी कार्यो में वह सहयोग करते हैं। उनके संगठन ने दिल्ली के विभिन्न इलाकों में मरीजों और मृतकों के लिए एम्बुलेंस सेवा चला रखी है। जितेन्द्र सिंह शंटी दिल्ली विधानसभा और दिल्ली नगर निगम के सदस्य भी रह चुके हैं।

एथलीट सुधा सिंह को पद्मश्री

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अंतरराष्ट्रीय एथलीट एवं एशियन गेम्स में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत चुकी सुधा सिंह को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किए जाने की घोषणा से यहां जिले भर में खुशी की लहर दौड़ गई। भारत सरकार के इस निर्णय पर घरवालों ने मिठाई खिलाकर खुशी का इजहार किया। शाम को पद्म सम्मानो की  लिस्ट में 105 वे नंबर पर सुधा सिंह का नाम शामिल किया गया है। नामों की घोषणा होते ही यहां जिले के खेल प्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ गई। पिता हरि नारायण सिंह ने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि भारत सरकार द्वारा बेटी दिवस के एक दिन बाद ही दिए गए इस उपहार ने हम लोगों को गदगद कर दिया है। भाई प्रवेश नारायण सिंह ने कहा कि अपनी दीदी पर हम लोगों को पहले से ही गर्व है भारत सरकार ने इस गर्व को और भी बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि यह केवल सुधा सिंह का सम्मान नहीं बल्कि रायबरेली और अमेठी के आम लोगों का सम्मान हुआ है। एथलीट सुधा सिंह को पद्मश्री सम्मान की घोषणा से पूरे जिले में हर्ष की लहर है। कई संगठनों संस्थाओं ने भी सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है।
एशियन गेम्स में जीत चुकी हैं गोल्ड और सिल्वर मेडल

नृपेंद्र मिश्र ने कसिली को दी राष्ट्रीय फलक पर पहचान
देवरिया जिले की बरहज तहसील के कसिली गांव का नाम एक बार फिर से राष्ट्रीय फलक पर चमका है। कसिली के पहले आईएएस अफसर रहे नृपेंद्र मिश्र को सरकार ने पद्म भूषण देने का एलान किया है। वह इस समय श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट मंदिर निर्माण समिति के चेयरमैन हैं। इससे पूर्व वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रधान सचिव भी रहे थे। उनके पद्म भूषण दिए जाने की खबर से गांव वाले खुशी से झूम उठे। गांव मिठाई बांटकर खुशियां मनाई जा रही है। नृपेंद्र मिश्र का ज्यादातर जीवन बाहर गुजरा। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी बाहर हुई। पिता शिवेश चंद्र मिश्र बिजली विभाग में सीनियर एकाउंट ऑफिसर रहे। नृपेंद्र मिश्र शुरू से ही मेधावी रहे। नृपेंद्र मिश्र के चचेरे भाई व गन फैक्ट्री कानपुर से सेवानिवृत्त राजेंद्र मिश्र ने बताया कि वह डीएवी कॉलेज कानपुर में एक साल उनसे सीनियर थे। कालेज में उनकी पूछ थी। काफी सहज भी रहे। कभी सेकेंड डिविजन नहीं आए। हमेशा प्रथम श्रेणी में अंक मिले। 

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