देश के सबसे बड़े सूबे यानि उत्तर प्रदेश में समाजवादी की इतनी बुरी हार पहले कभी नहीं हुई थी। समाजवादी पार्टी को अपने दम पर आगे ले जाने और देश की राजनीति में पार्टी के महत्व को बढ़ाने वाले मुलायम सिंह यादव ने ऐसी हार की कल्पना तो सपने में भी नहीं की होगी। हालांकि उनके भाई शिवपाल यादव इतनी बड़ी हार की कल्पना शायद तभी कर ली थी जब समाजवादी परिवार के झगड़े देश के हर नागरिकों के जुबान पर थे। समाजवादी की शर्मनाक हार के बाद शिवपाल यादव ने मीडिया को कहा कि यह हार समाजवादी की नहीं बल्कि घमंड की है। शिवपाल के इस बयान ने साफ कर दिया समाजवादी परिवार की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के दौरान कहते रहे कि नेता जी का आर्शीवाद उनके साथ है लेकिन इस हार ने आर्शीवाद पर भी सवाल उठा दिए हैं। क्या सच में मुलायम सिंह का आर्शीवाद अखिलेश के साथ था? अगर था तो क्यों उन्होंने सिर्फ गिनी चुनी रैलियां की? क्यों उनकी बहु अर्पणा यादव भी अपना सीट नहीं बचा पाई? खैर सवाल तो बहुत है पर फिलहाल किसी भी सवाल का जवाब नहीं।
यूपी को यह साथ पसंद है यही नारा लेकर अखिलेश यादव और राहुल गांधी मैदान में पर उतरे थे लेकिन जनता ने इस साथ को मात्र 54 सीटों पर सीमित कर दिया। सपा-कांग्रेस की इस करारी हार के बाद एक सवाल और उठ गया था कि क्या अब भी यह गठवंधन जारी रहेगा? इस सवाल का जवाब अखिलेश यादव ने नतीजे आने के बाद हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में दे दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए कहा कि हमारा गठबंधन आगे भी जारी रहेगा। एक तरफ कि अखिलेश ने कहा यूपी की जनता को हाईवे नहीं बुलेट ट्रेन पसंद है तो दूसरी तरफ मायावती ने EVM खराब होने का आरोप लगा दिया। अखिलेश और मायावती के बयानों से साफ नजर आ रहा है कि इतनी बड़ी हार को विपक्षी हजम नहीं कर पा रहे है। जिसका प्रमाण उनके बयानों से साफ जाहिर हो रहा है और देश भर ऐसे बयानों की आलोचनाएं भी हो रही हैं। इस बड़ी हार के बाद अखिलेश को सोचना होगा कि उनकी हार की वजह जाति-धर्म की राजनीति, परिवारवाद, पारिवारिक कलह, कांग्रेस के साथ गठबंधन या ये सभी हैं। ी