सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां अब देशविरोधी गतिविधियों में किसी व्यक्ति और संस्थान के शामिल होने पर उनके कंप्यूटरों की जांच कर सकती है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए सभी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को कंप्यूटरों के डाटा जांचने का अधिकार दे दिया है।

केंद्र सरकार ने आईबी, रॉ, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, ईडी, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, सीबीआई, दिल्ली पुलिस के आयुक्त, एनआईए और जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर तथा असम के सिग्नल इंटेलीजेंस निदेशालय को आदेश जारी कर दिया है।

केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 के तहत यदि एजेंसियों को किसी भी संस्थान या व्यक्ति पर देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का शक होता है तो वे उनके कंप्यूटरों में मौजूद सामग्रियों को जांच सकती हैं और उन पर कार्रवाई कर सकती हैं।

इसमें जांच एजेंसी के पास धारा 69 के तहत संदिग्ध शख्स के कंप्यूटर संसाधन से उत्पन्न, प्रेषित, प्राप्त या संग्रहीत किसी भी जानकारी को रोकने, निगरानी और डीकोड करने का अधिकार होगा। वहीं इस मामले पर राजनीति शुरू हो गई है।

एआईएमआईएम के मुखिया और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि आपका 1984 में स्वागत है। ओवैसी ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘मोदी ने सरकार के एक सामान्य आदेश का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसियों को हमारे संचार की जासूसी करने की इजाजत दे दी। किसे पता था कि जब वह कहते थे घर घर मोदी, तब उनका मतलब यह था। जॉर्ज ऑर्गवेल के बड़े भाई यहां हैं और 1984 में आपका स्वागत है।’

आपको बता दें कि जिन 10 एजेंसियों को कंप्यूटरों की जांच करने का अधिकार मिला है। उनके नाम हैं- इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय (रॉ), डायरेक्टोरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर।

इन तीन तरीकों से रखी जाएगी नजर

वहीं इन 10 सेंट्रल एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर्स को मॉनिटर और इंटरसेप्ट करने की क्षमता के बाद एजेंसियों की आपके ईमेल और आपके कंप्यूटर में रखा हर तरह के डेटा पर नजर रहेगी । ये एजेंसियां तीन तरीकों (इंटरसेप्ट, मॉनिटर और डीक्रिप्ट) से आपके कंप्यूटर में रखे डाटा पर नजर रखेगी ।

  1. इंटरसेप्ट यानी आपके कंप्यूटर तक पहुंचने वाले डेटा को कोई जांच एंजेंसी इंटरसेप्ट करके ये पता लगा सकती है कि क्या बातचीत हो रही है। चाहे बातचीत वीडियो कॉल की शक्ल में हो या ईमेल की तरह।
  2. मॉनिटरिंग यानी एजेंसी चाहे तो आपको कंप्यूटर तक पहुंच कर इसकी निगरानी कर सकती है। लगातार नजर बनाए रखेगी कि आप अपने कंप्यूटर पर क्या कर रहे हैं।
  3. डीक्रिप्शन यानी अगर आपका कम्यूनिकेशन सिक्योर है या फिर आपने अपने डेटा को किसी तरह से सिक्योर करके रखा है तो एजेंसी इसे एन्क्रिप्ट करके इसमें सा सारी जानकारियां इकठ्ठी कर सकती है।

इतना ही नहीं आप जहां से इंटरनेट खरीदते हैं वो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आपकी जानकारियां आपकी यूसेज हिस्ट्री सराकारी एजेंसी को दे सकती है। इस आदेश में कहा गया है कि इसके पीछे सरकार ने नेशनल सिक्योरिटी का हवाला दिया है।

बता दें कि केंद्र सरकार का यह कोई चौंकाने वाला फैसला नहीं है, क्योंकि ऐसा पहले भी देखने को मिला था जब कांग्रेस की सरकार थी। तब सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम नाम की व्यव्स्था थी जो अब भी एक रहस्य की तरह ही है।

2008 मुंबई अटैक के बाद UPA सरकार ने रखी नींव !
अमेरिकी एजेंसी एनएसए की निगरानी प्रोजेक्ट PRISM की तरह ही भारत में भी ऐसी ही निगरानी के लिए प्रोजेक्ट बनने की तैयारी शुरू हुई। जिसका नाम सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम रखा गया। इस प्रोजेक्ट को लॉफुल इंटरसेप्शन के लिए प्लान किया गया जिसके तहत फोन और इंटरनेट को इंटरसेप्ट किया जा सकता था। इसके लिए C-DoT और दूसरी सरकारी एजेंसी की मदद ली गई।

यूपीए सरकार ने 2008 मुंबई अटैक के बाद इंटरनेट स्पेस को सिक्योर करने के लिए इस योजना की तैयारी की थी। बाद मे सरकार इंटरसेप्ट और मॉनिटर करने के अपने आईडिया के साथ नवंबर 2009 में राज्यसभा में कहा, ‘सरकार देश में मोबाइल फोन्स, लैंडलाइन और इंटरनेट कम्यूनिकेशन को मॉनिटर करने के लिए सेंट्रलाइज्ड सिस्टम प्रोपोज करती है। CMS को DoT द्वारा लागू किया जाएगा ताकि सिक्योरिटी बनी रहे’।

दिसंबर 2012 में तब के MoS कम्यूनिकेशन और आईटी मिलिंद देवड़ा ने लोकसभा में कहा था, ‘इस सिस्टम का डेवेलपमेंट वर्क मोटे तौर पर पूरा हो चुका है। पायलट प्रोजेक्ट 30 सितंबर 2011 को दिल्ली में पूरा कर लिया गया जहां C-DoT ने दो ISF सर्वर इंस्टॉल किए थे’

आपको बता दें कि ये पूरा प्रोजेक्ट PRISM के तर्ज पर था जिसे स्नोडेन के खुलासे के बाद अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर बंद करने का ऐलान किया था।

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