लगातार दूसरी बार सत्ता के सिंहासन पर बैठने वाली बीजेपी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में है। चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने कैबिनेट 2.0 का विस्तार किया है। कैबिनेट विस्तार साल 2022 में होने वाले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश और वर्ष के अंत में गुजरात, सबसे महत्वपूर्ण राज्य हैं। लेकिन नई कैबिनेट के लिए सबसे बड़ी मुश्किल रोजगार, देश की अर्थव्यवस्था, बढ़ती जनसंख्या आदि कारण हैं।

निजी क्षेत्र की आय को सुधारना

वास्तव में पूंजीगत फायदे की तुलना में आय में लाभ अधिक महत्वपूर्ण है। यहीं पर सरकार को अपनी सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद भारत के निजी क्षेत्र को झटका लगा क्योंकि निर्यात वृद्धि कम हो गई। जबकि दूसरी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के अंतिम चरण और पहली मोदी सरकार के शुरुआती चरण के दौरान सुधार का दौर था। अर्थव्यवस्था वास्तव में 2008 से पहले की गति को कभी भी पुनर्प्राप्त नहीं कर पाई। इसका सीधा असर मजदूरों व कम आय वालों की कमाई पर पड़ा। उपर से कोरोना महामारी ने देश को और मुश्किल में डाल दिया है।

महंगाई को करना होगा कम

मुद्रास्फीति और महंगाई का आर्थिक सेक्टर में सबसे बड़ा रोल है। जैसे-जैसे कीमतें बढ़ती हैं, आय या मजदूरी में वृद्धि नाममात्र होती जाती है। 2020-21 में भारत की जीडीपी में 7.3% का संकुचन हुआ। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई), मुद्रास्फीति आदि में वृद्धि हुई। यह 2013-14 के बाद से सीपीआई में सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि है। 2018-19 के चुनावों से पहले मुद्रास्फीति असाधारण रूप से निम्न स्तर पर थी। कम मुद्रास्फीति के माहौल ने आय में वृद्धि धीमी की है

उच्च आय वर्ग में राहत की भावना बरकरार रखना

शेयर बाजार 7 जुलाई को एक और सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। शेयर बाजारों में उछाल ने बाहरी निवेशकों के बीच भारत की छवि को बेहतर किया है। एक तरह से, शेयर बाजारों ने आर्थिक मंदी के खिलाफ अच्छी तरह से आबादी के एक वर्ग को प्रतिरक्षा प्रदान की है जो महामारी की चपेट में आने से पहले भी मौजूद थी। इस वर्ग में कई प्रमोटर और उद्यमी शामिल हैं, जिनकी संपत्ति उनकी कंपनी के शेयर की कीमतों पर निर्भर करती है। 

बेरोजगारी

कोरोना के कारण देश की अर्थव्यवस्था कुपोषित हो चुकी है। दूसरी लहर में 2 करोड़ लोगों के हाथ से नौकरियां चली गई है। वहीं 97 फीसदी परिवार की आय कम हुई है। बता दें कि मई 2020 में बेरोजगारी की दर 23.5 फीसदी तक पहुंच गई थी, तब नेशनल लॉकडाउन लगा हुआ था। लेकिन इस साल जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो धीरे-धीरे राज्यों ने अपने स्तर पर पाबंदी लगाई और जो काम शुरू हो गए थे, फिर बंद हो गए। नई कैबिनेट के सामने रोजगार उत्पन्न करना सबसे बड़ी चुनौती है।

भुखमरी

देश में महामारी के बाद भूखमरी बढ़ गई है। ऑक्सफैम की ताज़ा रिपोर्ट ‘दि हंगर वायरस मल्टीप्लाइज’ में दावा किया गया है कि दुनिया में कोरोना से मरने वालों की संख्या भुखमरी से मरने वालों की संख्या से पीछे चली गई है। अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी एजेंसी ‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19के कारण दुनिया में हर मिनट करीब 7 लोगों की जान जाती है और भुखमरी से 11 लोगों की। बीते एक साल में पूरी दुनिया में अकाल जैसे हालात का सामना करने वालों की संख्या 6 गुना बढ़ गई है। खैर यह तो दुनिया भर में हो रहा है लेकिन भारत में बढ़ते देर नहीं लगेगी। नई नवेली कैबिनेट के सामने अनेक समस्या है जिसे हल करना मोदी कैबिनेटे के लिए बड़ी चुनौती है।


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