भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन एक बार फिर चर्चे में हैं। भले ही सरकार नोटबंदी को लेकर तमाम उपलब्धियां गिना रहीं हो लेकिन रघुराम राजन चुप रहने वाले व्यक्तियों में से नहीं हैं। अपना पद छोड़ने के एक साल बाद उन्होंन नोटबंदी पर मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, मैं कभी नोटबंदी के पक्ष में नहीं था बल्कि मैंने नोटबंदी के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी। इसके साथ ही राजन ने कहा कि कम समय में नोटबंदी से होने वाला नुकसान लंबी अवधि तक भारी पड़ सकती है। हालांकि राजन अपनी बेकाकी रवैया के कारण अधिक चर्चे में रहते हैं। उन्होंने आरबीआई गवर्नर का अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद बतौर फैकल्टी शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनस में वापसी कर ली।

बता दें रघुराम राजन रिजर्व बैंक के 23 वें गवर्नर थे। ऐसे में जब वे रिजर्व बैंक के गवर्नर की कुर्सी संभाल रहे थे तो देश की अर्थव्यवस्था बूरे दौर से गुजर रही थी। उस वक्त भारतीय रुपया कमजोर हो रहा था और आर्थिक वृद्धि में तेजी से गिरावट थी जो उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी।

दरअसल राजन ने ‘I Do What I Do: On Reforms Rhetoric and Resolve’ नामक एक किताब लिखी है जो अगले सप्ताह में आने वाली है। जिसमें नोटबंदी की बातों का खूलकर जिक्र किया है। राजन की किताब के अनुसार केंद्र सरकार के द्वारा उनकी असहमति के बावजूद उनसे इस मुद्दे पर नोट तैयार करने को कहा गया। आरबीआई ने नोट तैयार कर सरकार को सौंप दिए और इसके बाद इस पर निर्णय करने के लिए सरकार ने समिति बनाई। अपने इस किताब में लिखा कि ‘आरबीआई ने इस ओर इशारा किया कि अपर्याप्त तैयारी के अभाव में क्या हो सकता है’।

गौरतलब है इसी सप्ताह आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि पुराने बंद किए गए 500 और 1000 रुपये के 99 प्रतिशत नोट बैंक में जमा हो गए। हालांकि सरकार ने नोटबंदी के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि इससे टैक्स बेस बढ़ने से लेकर डिजिटल ट्रांजेक्शन से फायदे को लेकर कई अन्य फायदों की गिनती गिनाई है। हालांकि राजन ने माना कि नोटबंदी के पीछे सरकार का इरादा काफी अच्छा था, इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कहा ‘निश्चित रूप से अब तो कोई किसी सूरत में नहीं कह सकता है कि यह आर्थिक रूप से सफल रहा है।’

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