Post-Election Violence : पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले पर राज्य सरकार के वकील और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता Kapil Sibal ने पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि चुनाव के बाद हुई हिंसा का आरोप पश्चिम बंगाल सरकार पर लगाया गया जबकि मुख्यमंत्री ने 5 मई को शपथ लिया। उसके पहले की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की थी। वहीं NHRC की कमेटी में 6 सदस्य थे उसमें कुछ ऐसे सदस्य थे जो खुले तौर पर सत्ताधारी दल से संबंध रखते थे। NHRC के तीन सदस्यों पर लगातार सवाल उठते आ रहे हैं।
कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी भी घटना के संबंध में विशेष रूप से आपराधिक जांच में तथ्यों की खोज करने का एकमात्र तरीका है जांच और कोई अन्य तरीका नहीं है। जब किसी मामले में FIR दर्ज की जाती है तो CrPC के जरिए यह देखना होता है कि शिकायत सही है या नहीं।
कपिल सिब्बल ने जांच समिति पर उठाए सवाल
साथ ही मानवाधिकारों के उल्लंघन के संदर्भ में स्वयं मानवाधिकार अधिनियम, मानव अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में एक प्रक्रिया निर्धारित किया गया है। जबकि यहां पर किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया।
सिब्बल ने कहा कि जांच के लिए गठित समिति के पास जांच करने की कोई शक्ति नहीं थी। बिना जांच-पड़ताल के आप तथ्य कैसे जुटाते हैं?
उसके बाद सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि एक फैसले में यह माना गया था कि अगर समिति का एक व्यक्ति पक्षपाती है तो वो समिति नहीं रह जाती है। यहां तो 3 सदस्य सवालों के घेरे में हैं। समिति के एक सदस्य का ट्विटर तक भाजपा से संबद्ध रखता था जबकि एक IB के पूर्व प्रमुख थे और एक कानूनी सेवा प्राधिकरण सदस्यों में से एक थे।
यह भी पढ़ें : कलकत्ता हाई कोर्ट के जज ने ममता बनर्जी पर लगाया 5 लाख का जुर्माना, दीदी ने न्यायमूर्ति को बताया था धोखेबाज
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में सवाल उठाते हुए कहा कि मुद्दा यह है कि राज्य को फटकार लगाई जाती हैं और राज्य को कोई जानकारी नहीं दी जाती है। इस घटना पर हजारों मामले दर्ज किए गए और उनपर जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का समय दिया गया।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट से पूूूछे तीखे सवाल
कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुछेद 226 के तहत क्या हाईकोर्ट बड़े पैमाने पर मामलों के हस्तांतरण का आदेश दे सकती है? यहां सामूहिक स्थानांतरण की कोई अवधारणा नहीं है। यदि कोर्ट को लगता हैं कि एजेंसी पक्षपाती है तब तो ठीक है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि आपको ऐसे कई मामले मिलते हैं तो आप सभी को स्थानांतरित कर देंगे। यह सही नही है। सिब्बल ने कहा कि सवाल यह है कि क्या हाईकोर्ट एक साथ इतने सारे केस की मेरिट पर बिना जानकारी लिए जांच को ट्रांसफर करने का आदेश सुना सकता है?
इसके अलावा हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब पर बिना कोई गौर किए CBI जांच का आदेश सुना दिया। सिब्बल ने आगे कहा NHRC कमेटी ने 30 जून को अंतरिम रिपोर्ट दी थी। जब राज्य सरकार द्वारा कमेटी की रिपोर्ट मांगी गई थी तो हाई कोर्ट द्वारा राज्य सरकार को जांच रिपोर्ट नहीं दी गई ऊपर से तीखी टिप्पणी भी की गई।
यह भी पढ़ें : बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह के बिगड़े बोल, ममता बनर्जी को बताया लंकिनी, कहा योगी-मोदी हैं राम और हनुमान, लंकिनी का होगा नाश
सिब्बल ने आरोप लगते हुए कहा कि रेप से जुड़ी शिकायतों को लेकर भी कुछ दस्तावेज देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि इससे शिकायतकर्ताओं के नाम का खुलासा होगा। प्राइवेट पार्टी के सामने नाम खुलासा न करने की दलील तो समझ में आती है। लेकिन राज्य सरकार के साथ इसे साझा करने में क्या दिक़्क़त है?
जस्टिस सरन ने कहा कि इस मामले में कुछ मामले निजी पक्षकारों द्वारा भी दाखिल किया गया है जिनपर नोटिस भी जारी किया गया था। इन सभी की सूची कोर्ट मास्टर को देने और उसकी एक प्रति कपिल सिब्बल को भी देने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।
यह भी पढ़ें :
ममता की चोट पर चुनाव आयोग का बयान, “मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमले का नहीं मिला कोई सबूत”