‘एशिया के सुकरात’ कहे जाने वाले Periyar कौन थे? जानिए

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E.V. Ramaswamy Periyar: आज पेरियार की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन साल 1973 में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। आइए उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों को जानते हैं। तमिलनाडु की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ने वाले Periyar का पूरा नाम इरोड वेंकट नायकर रामासामी था। उनका जन्म 17 सितम्बर 1879 को तमिलनाडु के इरोड में संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता वेंकतप्पा नायडू बहुत बड़े व्यापारी थे। उनकी माता का नाम चिन्ना थायाम्मल था। पेरियार के परिवार में उनके एक बड़े भाई और दो बहनें भी थीं।

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Periyar

इरोड वेंकट नायकर रामासामी ने 1885 में इरोड के एक प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लिया। लेकिन कुछ ही सालों की शिक्षा के बाद वे अपने पिता के साथ उनके व्यवसाय से जुड़ गए। पेरियार बचपन से ही धर्म पर कही गई बातों पर सवाल उठाते थे। उन्होंने हिंदू धर्म के महाकाव्यों और पुराणों में कही गई बातों पर जीवन भर सवाल उठाया। पेरियार ने सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, दासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह और स्त्रियों और दलितों के शोषण का खुलकर विरोध किया। उन्होंने जाति व्यवस्था से जुड़े मुद्दो का भी विरोध और बहिष्कार किया था।

भारतीय राजनीति की सबसे विवादित हस्‍त‍ियों में से एक थे Periyar

बताया जाता है कि पेरियार का विवादों से गहरा नाता रहा है। 70 की उम्र में 32 वर्षीय मनियम्मई से शादी के बाद तमिलनाडु में उनकी खूब आलोचना की गई थी। धर्म ग्रंथ आदि पर बोलने की वजह से वो हमेशा विवादों में ही रहे। ये कहना गलत नहीं होगा कि पेरियार का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा।

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पेरियार के साथ उनकी पत्नी

Periyar ने की थी द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत

बता दें कि तमिलनाडु में कोई भी पार्टी खुले मंच से पेरियार की आलोचना करने से बचती है। वो पेरियार ही थे जिन्‍होंने द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत की, और इसी आंदोलन से DMK, AIADMK और MDMK जैसी पार्टियों का जन्म हुआ।

ब्राह्मणों के खिलाफ बोलने से मिली पहचान

पेरियार महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थे। बाद में उन्होंने कांग्रेस भी ज्वॉइन की। लेकिन कांग्रेस सदन में ब्राह्मणों का वर्चस्व उनसे देखा नहीं गया और उन्होंने पार्टी छोड़ दी। बता दें कि ब्राह्मणों से उनका विवाद बाद तलक रहा था। पेरियार का कहना था कि ब्राह्मणों ने अपने धार्मिक कर्मकांड के बल पर सभी जातियों को वश में कर रखा है।

Periyar ने मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए किया आंदोलन

1924 में पेरियार ने केरल के मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए आंदोलन किया। कार्यकर्ता के रूप में पेरियार को सबसे बड़ी पहचान निचली जातियों को सम्‍मान दिलाने से ही मिली। दक्षिण भारत में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ उन्होंने जमकर आंदोलन चलाया। पेरियार का सबसे विवादित आंदोलन हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों के खिलाफ था। इस आंदोलन में मूर्तियां तोड़ी गईं। जगह-जगह मूर्तियों को जूतों की माला पहनाकर जुलूस निकलवाया गया था।

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पेरियार की तस्वीर

Periyar ने किया था गांधी का विरोध

गौरतलब है कि मोहम्‍मद अली जिन्‍ना और डॉ बीआर अंबेडकर के अलावा, पेरियार ही वो तीसरी बड़ी शख्सियत रहे जिन्‍होंने खुलकर महात्‍मा गांधी का विरोध किया। जब गांधी की हत्‍या हुई तो पेरियार बेहद दुखी थे और भारत का नाम ‘गांधी देश’ रखने की मांग की थी। लेकिन कुछ समय बाद ही, उन्‍होंने गांधी को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया था। दिसंबर 1973 में दिए अपने आखिरी भाषण में भी पेरियार ने कहा था,“हम गांधी का संहार करते, उससे पहले ब्राह्मणों ने हमारा काम कर दिया”। बता दें कि जिन्‍ना ने जब पाकिस्‍तान की मांग उठाई। उसी का सहारा लेकर पेरियार ने द्रविड़नाडु की मुहिम भी तेज कर दी थी।

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